Ancient History of India प्राचीन भारत का इतिहास – महाकाव्य और पुराणों में भारत को “भारतवर्ष” और यहां के निवासियों को भरत की संतान कहा गया है।
भरत एक प्राचीन कबीले का नाम था। प्राचीन भारतीय अपने देश को जम्बूदीप कहते थे। जम्बू का अर्थ जामुन यानि जामुन के वृक्षो का देश।
प्राचीन ईरानी भारत को सिन्धु नदी से जोड़ते थे और वो इसे सिन्धु न बोलकर हिन्दू कहते थे।
यूनानी इसे इन्दे कहते थे और इसी के आधार पर अंग्रेजो ने इसे इंडिया कहा।
यूनानियों ने भारत को इंडिया कहा और मुस्लिम इतिहासकारो ने हिन्द या हिंदुस्तान कहा।
भारतीय इतिहास को 3 भागो में बाटा गया है – प्राचीन भारत , मध्यकालीन भारत और आधुनिक भारत।
सबसे पहले इतिहास को 3 भागो में क्रिस्टोफ सेलियरस ने बाटा था। ये जर्मन इतिहासकार था।
प्राचीन भारत इतिहास के स्त्रोत –
1. धर्मग्रंथ
2. ऐतिहासिक ग्रंथ
3. विदेशियों का विवरण
4. पुरातत्व से जुड़े साक्ष्य
1. धर्मग्रंथ
धर्मग्रंथ से जो जानकारी मिलती है उसके बारे में जान लेते है।
भारत का सबसे पुराना धर्मग्रंथ वेद है। महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास इसके संकलन कर्ता है।
वेद 4 प्रकार के है – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद, अथर्ववेद
इन चारो वेदो को संहिता कहा जाता है।
ऋग्वेद – ऋचाओं के ज्ञान को ऋग्वेद कहा जाता है।
मंडल – 10
सूक्त – 1028
ऋचाय – 10462
ऋग्वेद की ऋचाओं को पढ़ने वाला होत्र कहलाता है।
ऋग्वेद से आर्य वंश की राजनितिक प्रणाली और इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख है। गायत्री मंत्र विश्वामित्र ने लिखा था। गायत्री मंत्र सावित्री सूर्य देवता को समर्पित है।
ऋग्वेद के 7 वे मंडल में दसराज युद्ध का उल्लेख है। यह युद्ध सुदास और दस जन के बीच लड़ा गया जिसमे सुदास की जीत हुई और यह युद्ध रावी नदी के तट पर लड़ा गया।
ऋग्वेद के 8वे मंडल की हाथो से लिखी ऋचाओं को खिल कहा जाता है।
ऋग्वेद के 9वें मंडल में सोम देवता का उल्लेख है।
चातुष्वर्णय समाज की कल्पना ऋग्वेद के दसवे मंडल में उल्लेखित है। जिसके अनुसार ब्राह्मण, ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ, क्षत्रिय ब्रह्मा की भुजाओ से पैदा हुआ, वैश्य ब्रह्मा की जांघो से पैदा हुआ और शुद्र ब्रह्मा के चरणों से पैदा हुआ।
ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 और अग्नि के लिए 200 ऋचाए है।
ऋग्वेद में अधन्य शब्द का मतलब गाय से है।
यजुर्वेद – सस्वर पाठ के लिए मंत्रो का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। और इसको पढ़ने वालो को अध्वर्यु कहते है।
यह एक ऐसा वेद है जो गद्ध और पद्ध दोनों में है
सामवेद – जिन ऋचाओं को गाया जा सकता है उनका संकलन सामवेद कहलाता है। इसको पढ़ने वाले को उदरात्र कहते है।
सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
अथर्ववेद – इसकी रचना अथर्वा ऋषि ने की थी। इस वेद में तंत्र मंत्र, जादू टोना, वशीकरण, प्रेम, विवाह, विश्वास, अन्धविश्वास इन सभी का वर्णन है।
सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद और सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।
2. ऐतिहासिक ग्रंथ
भारत की ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन पुराणों में मिलता है। पुराणों के रचनाकार लोमहर्ष है अगर लोमहर्ष ना हो ऑप्शन में तो उग्रश्रवा है।
कुल 18 पुराण है जिनमे से 5 पुराणों में ही सभी राजाओ की वंशावली का वर्णन है यानि सिर्फ 5 पुराणों में ही राजाओ के बारे में उल्लेख है।
विष्णु पुराण में मौर्य वंश का उल्लेख है
मत्स्य पुराण में सातवाहन वंश का उल्लेख है
वायु पुराण में गुप्त वंश का उल्लेख है
पुराणों में सबसे पुराना मत्स्य पुराण है।
स्मृति ग्रंथो में सबसे पुराणी मनुस्मृति है। यह शुंग वंश का मानक ग्रंथ है।
जातक कथाओ में महात्मा बुद्ध के पुनर्जन्म के बारे में उल्लेख है।
हीनयान का प्रमुख ग्रंथ “कथावस्तु” है जिसमे महात्मा बुद्ध के जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैन धर्म के इतिहास के बारे में “कल्पसुत्र“ से पता चलता है।
अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य और विष्णुगुप्त) है। अर्थशास्त्र से हमें मौर्य इतिहास के बारे में पता चलता है।
भारत की ऐतिहासिक घटनाओं को संस्कृत में लिखने का प्रयास सबसे पहले कल्हण ने किया था। कल्हण ने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम राजतरंगिणी है। जिसमे कश्मीर के इतिहास के बारे में बताया है।
अरबो की सिंध पर विजय के बारे में हमे चचनामा पुस्तक से मिलता है जिसके लेखक अली अहमद है।
संस्कृत भाषा की पहली पुस्तक का नाम “अष्टाध्यायी” है जिसके लेखक “पाणिनी” है।
अष्टाध्यायी में पहली बार लिपि शब्द का प्रयोग हुआ है।
3. विदेशी यात्रियों से मिलने वाली जानकारी:
A. यूनानी – रोमन लेखक
B. चीनी लेखक
C. अरबी लेखक
D. अन्य लेखक
A. यूनानी – रोमन लेखक:
टेसियस : यह ईरान का राजवैध था।
हेरोटोडस : इसे “इतिहास का पिता” कहा जाता है। इसने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था “हिस्टोरिका“
मेगस्थनीज़ : यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था और यह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। इसने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था “इण्डिका“. इस पुस्तक में मौर्य समाज और उनकी संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।
डाइमेकस : यह सीरियन के राजा आंटियोकस का राजदूत था। यह बिन्दुसार के दरबार में आया था
डाइनोसियस : यह मिस्र के राजा टॉलमी फिले डेल्फस का राजदूत था और यह अकबर के दरबार में आया था।
टॉलमी : इसने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था “भारत का भूगोल“
पिलनी : इसने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था “नेचुरल हिस्ट्री” इस पुस्तक में भारतीय पशु, पेड़ पौधों, और खनिजों का उल्लेख है।
B. चीनी लेखक
फाहियान : यह चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था। इसने मध्यप्रदेश की जनता को खुशहाल सुखी और समृद्ध बताया है।
संयुगन : यह 518 में भारत आया और इसने बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी हासिल की।
हुएनसांग : यह 630 ईस्वी में भारत पंहुचा और भारतीय राज्य कपिशा पंहुचा था। यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था और लगभग 15 सालो तक भारत में रहने के बाद 645 ईस्वी में चीन वापस लौट गया। इसने बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में पढाई की और बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी ली। इसकी पुस्तक का नाम सी यु की था। और इसके अनुसार सिंध का राजा शुद्र था।
नोट : हुएनसांग ने जब नालंदा विश्वविद्यालय में पढाई की तब नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
C. अरबी लेखक
अलबरूनी : यह महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आया था। इसने अरबी भाषा में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था “किताब उल हिन्द“,
“तहक़ीक़ ऐ हिन्द” या “भारत की खोज“। इस पुस्तक में राजपूत समाज के रीति-रिवाज, धर्म, और उनकी राजनीति के बारे में बताया गया है।
D. अन्य लेखक
तारानाथ : यह तिब्बत का लेखक था इसने कंग्युर और तंग्युर 2 ग्रंथो की रचना की थी।
मार्कोपोलो : यह 13 वी शताब्दी में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था और इसने पाण्ड्य के इतिहास के बारे में बताया है।
4. पुरातत्व साक्ष्य से मिली जानकारी :
भारतीय पुरातत्व का पितामाह – सर अलेक्जेण्डर कनिंघम को कहा जाता है।
1400 ईस्वी के अभिलेख “बोगाज-कोई” में इंद्र देवता के बारे में वर्णन मिलता है।
प्रयाग अभिलेख में समुंद्रगुप्त के बारे में जानकारी मिलती है।
ऐहोल अभिलेख में पुलकेशिन द्वित्य के बारे में जानकारी मिलती है।
जूनागढ़ अभिलेख में रुद्रदामन के बारे में जानकारी मिलती है।
देवपाड़ा अभिलेख में बंगाल के शासक विजयसेन के बारे में जानकारी मिलती है।
सबसे पहले भारत वर्ष का जिक्र हाथी गुम्फ़ा अभिलेख में मिलती है।
भीतरी अभिलेख से हमे भारत पर होने वाले पहले हुण आक्रमण की जानकारी मिलती है।
सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य ऐरण अभिलेख से मिलता है।
नोट : अभिलेखों के अध्ययन को इपिग्राफी कहते है।
उत्तर भारत के मंदिरो की शैली नागर शैली और दक्षिण भारत के मंदिरो की शैली को द्रविड़ शैली कहा जाता है।
सबसे पहले सिक्को पर लेख लिखने का काम यवन शासको ने किया था।
प्राचीन सिक्को को आहत कहा जाता है।
अरिकमेडु से रोमन सिक्के प्राप्त हुए है। अरिकमेडु पुंडुचेरी में है।
समुंद्रगुप्त ने अपने सिक्के चलाये उन पर खुद की फोटो लगवाई वीणा बजाते हुए जिससे ये पता चलता है की समुंद्रगुप्त संगीत प्रेमी था।
इतिहास को 3 भागो में बाटा गया है – प्रागैतिहासिक काल, आध ऐतिहासिक काल, इतिहास
प्रागैतिहासिक काल – जिस काल में मनुष्य ने घटनाओ का कोई लिखित विवरण नहीं दिया है उसे प्रागैतिहासिक काल कहते है।
आध ऐतिहासिक काल – जिस काल में मनुष्य ने घटनाओ को लिखा तो सही पर उनको पढ़ा नहीं जा सका उस काल को आध ऐतिहासिक काल कहते है।
इतिहास – जिसका विवरण लिखित रूप में मिलता हो।
पूर्व पाषाण युग में मानव की जीविका का आधार था शिकार
आग का अविष्कार पुरा पाषाण काल में हुआ।
पहिये का अविष्कार नव पाषाण काल में हुआ।
नव पाषाण काल में ही मनुष्य ने कुत्ते को पालतू बनाया।
कृषि का अविष्कार नव पाषाण काल में ही हुआ।
कृषि में सबसे पहले गेहू और जौ बोयी गयी थी।
इंसान ने सबसे पहले तांबा धातु का प्रयोग किया और सबसे पहले जो औजार बनाया वो था कुल्हाड़ी।
नोट – भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो है। सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का अर्थ है मृतकों का टीला।
नोट – सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो है और भारत में सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी है जो घग्घर नदी के किनारे पर है और हरियाणा के हिसार जिले में है। राखीगढ़ी की खोज 1963 में सूरजभान ने की थी।
सिन्धु सभ्यता : रेडियोकार्बन C14 के तहत सिन्धु घाटी सभ्यता का समय 2350 से 1750 ईस्वी माना गया है।
सिन्धु सभ्यता की खोज राय बहादुर दयाराम साहनी ने की थी।
सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है। यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी।
सिन्धु सभ्यता की मुख्य फसल गेहू और जौ थी।
सिन्धु सभ्यता के लोग मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।
सिन्धु सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथो में था।
सिन्धु सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्य सागरीय थे। सिन्धु सभ्यता नगरीय सभ्यता थी।
सिन्धु सभ्यता के लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए दो पहिये या चार पहिये वाली बैलगाड़ी का प्रयोग करते थे।
मेसोपोटामिया अभिलेख में “मेलूहा” शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका मतलब सिन्धु सभ्यता ही है।
सिन्धु सभ्यता के लोग धरती की पूजा किया करते थे। शिव पूजा और वृक्ष पूजा भी करते थे। और कुबड़ वाले सांड की भी पूजा की जाती थी।
सिन्धु सभ्यता के लोग माता को अधिक मानते थे पिता की तुलना में यानि मातृपरधान लोग थे।
सिन्धु सभ्यता के लोग सूती और ऊनी कपड़ो का अधिक प्रयोग करते थे।
सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए बर्तन रखते थे जो लाल मिटटी के बने होते थे।
सिन्धु सभ्यता के लोग मनोरंजन के लिए मछली पकड़ते थे, शिकार करते थे, चौपड़ और पाशा खेलते थे।
पर्दा प्रथा और वैश्यवर्ती सिन्धु सभ्यता में थी।
सिन्धु सभ्यता के विनाश का कारण बाढ़ था।
सिन्धु सभ्यता के लोग आग में पकी हुई ईटों को टेराकोटा कहते थे।
सिन्धु सभ्यता की मोहरो पर सबसे अधिक “एक श्रंगी पशु” छापे हुए मिले है।
सिन्धु सभ्यता के दौरान खोजे गए 6 नगर – मोहनजोदड़ो , हड़प्पा, राखीगढ़ी, धोलावीरा, कालीबंगन और गणवारी वाला
आजादी के बाद सिन्धु सभ्यता के सबसे अधिक नगर गुजरात से मिले है।
सिन्धु सभ्यता के बंदरगाह – लोथल और सुतकोतदा थे।
अग्निकुंड सबसे पहले लोथल और कालीबंगन से प्राप्त हुआ।
घोड़ो के अस्थिपंजर भी लोथल और कालीबंगन से मिले है।
लोथल से ही चावल के दाने मिले है जिससे ये पता चलता है की धान की खेती भी होती थी।
मनके बनाने के कारखाने लोथल और कालीबंगन से प्राप्त हुए है।
केवल लोथल नगर में जो घर थे उनके दरवाजे सड़क की तरफ खुलते थे नहीं तो सब नगरों के घर के दरवाजे पीछे की तरफ थे। लोग अपना घर ग्रिड प्रणाली के तहत बनाते थे।
ईटों का प्रयोग सबसे पहले कालीबंगन में हुआ था और यही खेतो को सबसे पहले जोता गया था।
शवों को जलाया और गाड़े जाते थे। हड़प्पा में शवों को दफनाया जाता था और मोहनजोदड़ो में शवों को जलाया जाता था। लोथल और कालीबंगन में दोनों होते थे।
सिन्धु सभ्यता की सबसे बड़ी ईमारत – अन्नागार (मोहनजोदड़ो में है)
स्नानघर भी मोहनजोदड़ो से मिला था सबसे पहले।
पशुपतिनाथ की मूर्ति भी मोहनजोदड़ो से मिली सबसे पहले और इस मूर्ति में पशुपतिनाथ के चारो और हाथी, गैंडा, चीता और भैसा है।
मोहनजोदड़ो से ही नाचती हुई एक युवती की मूर्ति मिली सबसे पहले जो कांस्य की मूर्ति थी।
सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थल :
A. सिन्धु सभ्यता या हड़प्पा की खोज दयाराम साहनी ने की थी रावी नदी के तट पर 1921 में , वर्तमान में यह पाकिस्तान के साहीवाल जिले में है।
B. मोहनजोदड़ो की खोज राखलदास बैनर्जी ने की थी सिंधु नदी के तट पर 1922 में , वर्तमान में यह पाकिस्तान के लरकाना जिले में है।
C. कालीबंगन की खोज बी बी लाल ने की थी घग्घर नदी के तट पर 1961 में , वर्तमान में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में है।
D. रंगपुर की खोज रंगनाथ राव ने की थी मादर नदी पर 1954 में , वर्तमान में गुजरात के काठियावाड़ जिले में है।
E. लोथल की खोज रंगनाथ राव ने की थी भोगवा नदी पर 1954 में , वर्तमान में यह गुजरात के अहमदाबाद जिले में है।
F. बनवाली की खोज रविन्द्र सिंह बिष्ट ने की रंगोई नदी पर 1974 में, वर्तमान में हरियाणा के हिसार जिले में है।
G. धौलावीरा की खोज भी रविन्द्र सिंह बिष्ट ने की लुनी नदी पर 1990 में, वर्तमान में यह गुजरात के कच्छ जिले में है.
यह भी पढ़े : Hariyana GK District Wise Notes
वैदिक सभ्यता :
वैदिक काल को 2 भागो में बांटा गया है – ऋग्वैदिक काल और उतरवैदिक काल
ऋग्वैदिक काल – 1500 से 1000 ईस्वी तक
उतरवैदिक काल – 1000 से 600 ईस्वी तक
आर्य सबसे पहले पंजाब और अफगानिस्तान में आकर बसे थे।
मैक्स मूलर के अनुसार आर्यो का मूल निवास मध्य एशिया था।
आर्यो ने जो सभ्यता बनाई उसे ही वैदिक सभ्यता का नाम दिया गया। यह सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
आर्यो की भाषा संस्कृत थी।
आर्यो की प्रशासनिक इकाई को 5 भागो में बांटा गया है – कुल, ग्राम, विश, जन, राष्ट्र
ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी और विश के मुखिया को विशपति और जन के मुखिया को राजन कहा जाता था।
राज्य के अधिकारियो में पुरोहित और सेनानी सबसे प्रमुख होते थे।
स्पश – जनता की हरकतों को देखने वाला गुप्तचर होता था।
वाज़पति – गोचर भूमि का अधिकारी होता था।
उग्र – अपराधियों को पकड़ने का काम करता था।
सभा और समिति राजा को सलाह देने के लिए एक संस्था होती थी। इसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था।
युद्ध में कबीले का नेतृत्व राजा करता था और युद्ध के गविष्ट शब्द का प्रयोग होता था। जिसका अर्थ था गायों की खोज।
ऋग्वैदिक काल 4 भागो में बाटा गया है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र
जिसके अनुसार ब्राह्मण, ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ, क्षत्रिय ब्रह्मा की भुजाओ से पैदा हुआ, वैश्य ब्रह्मा की जांघो से पैदा हुआ और शुद्र ब्रह्मा के चरणों से पैदा हुआ।
आर्यो का समाज पितृ प्रधान था और समाज की सबसे छोटी इकाई कुल अर्थात परिवार थी और कुल के मुखिया को पिता कहा जाता था। जिसे कुलप भी कहा जाता था।
जीवन भर शादी न करने वाली महिलाओ को अमाज़ू कहा जाता था।
आर्यो की मुख्य पीने की चीज सोमरस थी।
आर्यो के मनोरंजन के साधन – संगीत, रथ दौड़ , घुड़ दौड़
आर्यो का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन था।
आर्य समाज में गायों को मारने पर मृत्यु दंड दिया जाता था।
आर्यो का सबसे प्यारा पशु घोडा था और सबसे प्यारा देवता इंद्र था।
आर्यो ने जो धातु खोजी वो थी लोहा यानि लोहा को आर्यो ने खोजा था सबसे पहले।
व्यापार के लिए दूर दूर जाने वाले इंसान को पणी कहा जाता था।
ब्याज पर ऋण देने वाले व्यक्ति को वेकनाट कहा जाता था।
उतरवैदिक काल :
उतरवैदिक काल में हल को सिरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था।
उतरवैदिक काल में निष्क और शतमान मुद्रा की इकाइयां थी।
सांख्य दर्शन , सभी दर्शनों में सबसे पुराना है और इसमें 25 तत्व है जिनमे पहला तत्व प्रकृति है।
“सत्यमेव जयते” मुंडको उपनिषद से लिया गया है। इस उपनिषद में यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गयी है।
उतरवैदिक काल में कौशाम्बी नगर में पहली बार पक्की ईटों का प्रयोग हुआ था।
महाकाव्य 2 है – महाभारत और रामायण
महाभारत का पुराना नाम जय संहिता है और यह सबसे बड़ा महाकाव्य है।
गोत्र नमक संस्था का जन्म उतरवैदिक काल में ही हुआ।
बुद्ध के जन्म से पहले छठी शताब्दी में भारतवर्ष 16 महाजनपदों में बटा हुआ था। इसकी जानकारी हमे बौद्ध ग्रंथ अंगुतर निकाय से मिलती है।
जैन धर्म :
जैन धर्म के संस्थापक और पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे।
जैन धर्म के 23वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। जो काशी के राजा अश्वसेन के बेटे थे।
जैन धर्म के 24वे और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी थे।
महावीर स्वामी का जन्म 540 ईस्वी में कुण्डग्राम “वैशाली” में हुआ था। महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था और माता का नाम त्रिशला था।
महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्धमान था और उनकी पत्नी का नाम यशोधा था और महावीर स्वामी की बेटी का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था।
12 साल तक तपस्या करने के बाद ऋजुपलिका नदी के किनारे साल वृक्ष के निचे ज्ञान मिला। इसी समय से महावीर स्वामी जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रन्थ (बंधनहीन) कहलाये।
महावीर स्वामी ने अपना उपदेश प्राकृत भाषा में दिया।
महावीर स्वामी के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बने।
महावीर स्वामी ने अपने शिष्यों को 11 गणधरो में बांटा था। आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गन्धर्व था जो महावीर स्वामी के मृत्यु के बाद जिन्दा बचा। जो बाद में जैन धर्म का पहला उपदेशक बना।
जैन धर्म के तीन रत्न है – सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण
जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है।
जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारो को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया।
जैन धर्म को मानने वाले राजा – चन्द्रगुप्त मौर्य, राष्ट्र कूट के राजा अमोघवर्ष और चंदेल के राजा।
खुजराहो में जैन मंदिर का निर्माण चंदेल शासको ने करवाया।
मौर्य युग में जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र मथुरा था। मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से था।
जैन धर्म के सभी तीर्थंकर की जीवनी भद्रबाहु ने लिखी “कल्पसूत्र” में ।
72 साल की आयु में महावीर स्वामी की मृत्यु बिहार राज्य के पावापुरी (राजगीर) में हुई।
बौद्ध धर्म :
बौद्ध धर्म के संस्थापक, गौतम बुद्ध थे। गौतम बुद्ध को एशिया का शक्ति पुंज कहा जाता है।
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईस्वी में कपिलवस्तु के लुम्बनी नमक जगह पर हुआ।
गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था और माता का नाम मायादेवी था।
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। गौतम बुद्ध की शादी यशोधरा से हुई। और गौतम बुद्ध के पुत्र का नाम राहुल था।
गौतम बुद्ध जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो उन्हें 4 चीजे दिखाई दी वो थी – बूढ़ा आदमी , बीमार आदमी, शव, संन्यासी।
29 साल की आयु में गौतम बुद्ध ने घर छोड़ दिया जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया।
घर छोड़ने के बाद गौतम बुद्ध ने वैशाली के आलारकालाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ली।
आलारकालाम ही गौतम बुद्ध के पहले गुरु थे। इनके बाद गौतम बुद्ध ने राजगीर के रुद्रकारामपुत से शिक्षा ली।
6 साल की तपस्या के बाद 35 साल की आयु में बैशाख पूर्णिमा की रात को फल्गु नदी (निरंजना नदी) के किनारे पीपल के पेड़ के निचे ज्ञान मिला।
ज्ञान मिलने के बाद ही ये गौतम बुद्ध कहलाने लगे। और वह स्थान बौद्धगया कहलाया।
गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जिसे ऋषिपतनम भी कहा जाता है। और गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए।
गौतम बुद्ध ने अपने सबसे अधिक उपदेश श्रावस्ती में दिए।
80 साल की आयु में गौतम बुद्ध की मृत्यु (कुशीनारा) देवरिया, उत्तर प्रदेश में हुई। चुन्द नामक इंसान ने इनके खाने में जहर मिला दिया था।
बौद्ध धर्म में गौतम बुद्ध की मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा गया।
गौतम बुद्ध के जन्म और मृत्यु की तारीख को चीनी अभिलेख केन्टोन के अनुसार माना गया है।
बौद्ध धर्म के बारे में हमे पाली त्रिपिटक से पता चलता है। बौद्ध धर्म में मृत्यु को निर्वाण कहा गया है। बौद्ध धर्म का पहला लक्ष्य निर्वाण है।
बौद्ध धर्म के तीन रत्न – बुद्ध, धम्म, संघ
बौद्ध धर्म में 4 सभाएं हुई और इन चार सभाओ के बाद बौद्ध धर्म 2 भागो में बट गया जिसे हीनयान और महायान कहा गया।
धार्मिक जुलूस सबसे पहले बौद्ध धर्म में शुरू हुआ। बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार बैशाख पूर्णिमा है। जिसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहते है।
महात्मा बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गन्धार शैली के अनुसार किया गया है। लेकिन बुद्ध की पहली मूर्ति मथुरा कला के अनुसार बनी थी।
शैव धर्म –
भगवान शिव की पूजा करने वालो को शैव धर्म से जोड़ा गया है। भगवान शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया है।
शिवलिंग की पूजा के साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति से मिले है।
ऋग्वेद में शिव के लिए “रूद्र” नाम का उल्लेख किया गया है।
अथर्ववेद में शिव को पशुपति और भूपति कहा गया है।
लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है।
वामन पुराण में शैव सम्प्रदाय की 4 संख्या बताई गयी है – पाशुपत, लिंगायत, कापालिक, कालामुख
पाशुपत सम्प्रदाय शैव धर्म का सबसे पुराना सम्प्रदाय है, इसके संस्थापक लकुलीश थे। पाशुपत सम्प्रदाय के लोगो को पंचार्थिक कहा गया है।
श्रीकर पंडित एक पाशुपत आचार्य थे।
कापालिक सम्प्रदाय के भगवान भैरव थे। कापालिक सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र श्री शैल है।
कालामुख सम्प्रदाय के लोगो को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है।
लिंगायत सम्प्रदाय दक्षिण में ज्यादा था और इसे जंगम भी कहा जाता है। इस सम्प्रदाय के लोग शिवलिंग की पूजा करते थे।
शैव धर्म, चालुक्य, पल्लव, चोल, राष्ट्रकूट के समय ज्यादा लोकप्रिय रहा।
एलोरा के प्रसिद कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया।
कुषाण शासको की मुद्राओ पर शिव और नंदी दोनों बने हुए है।
वैष्णव धर्म :
वैष्णव धर्म का विकास भगवत धर्म से हुआ है और वैष्णव धर्म के बारे में हमे उपनिषदों से पता चलता है।
वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे जो वर्षण कबीले के थे और इनका निवास स्थान मथुरा था।
कृष्ण का उल्लेख सबसे पहले छांदोग्य उपनिषद में मिलता है। कृष्ण अंगिरस के शिष्य थे।
विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है।
इस्लाम धर्म :
इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब थे।
हजरत मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्ला और माता का नाम अमीना था।
हजरत मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था।
हजरत मुहम्मद साहब को 610 ईस्वी में मक्का के पास हीरा नमक जगह पर ज्ञान की प्राप्ति हुई।
हजरत मुहम्मद साहब की बेटी का नाम फातिमा था और उनके दामाद का नाम अली हुसैन था।
कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है।
हजरत मुहम्मद साहब की मृत्यु 632 ईस्वी में हुई और उन्हें मदीना में दफनाया गया।
हजरत मुहम्मद साहब की मौत के बाद इस्लाम धर्म 2 भागो में बट गया – सुन्नी मुस्लमान और शिया मुस्लमान
सुन्नी मुस्लमान – ये हजरत मुहम्मद साहब की कही गयी बातो में विश्वास रखते है।
शिया मुस्लमान – ये अली हुसैन की शिक्षाओं में विश्वास रखते है और अली हुसैन को हजरत मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी मानते है। अली हुसैन हजरत मुहम्मद साहब के दामाद थे।
हजरत मुहम्मद साहब को पैगम्बर भी कहा जाता है। हजरत मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी को खलीफा कहा गया। इस्लाम धर्म में खलीफा पद 1924 तक रहा और 1924 में तुर्की के राजा कमालपाशा ने इस पद को ख़त्म कर दिया।
इब्न इशाक ने सबसे पहले हजरत मुहम्मद साहब का जीवन चरित्र लिखा।
हजरत मुहम्मद साहब के जन्म दिन पर “ईद ऐ मिलाद उन नबी” त्यौहार मनाया जाता है।
ईशाई धर्म :
ईशाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह थे और ईशाई धर्म का प्रमुख ग्रंथ बाइबिल है।
ईसा मसीह का जन्म जेरुसलम के पास बैथलेहम जगह पर हुआ।
ईसा मसीह के जन्मदिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है।
ईसा मसीह के पिता का नाम जोसेफ था और माता का नाम मैरी था।
ईसा मसीह के 2 शिष्य थे – एन्डूस और पीटर
ईसा मसीह को सूली पर रोमन गवर्नर पोंटियस ने चढ़ाया।
ईसा मसीह को 33 ईस्वी में सूली पर चढ़ाया गया।
ईशाई धर्म का सबसे पवित्र चिन्ह क्रॉस है।
मगध राज्य :
मगध राज्य के संस्थापक का नाम बृहद्रथ था। इसकी राजधानी गिरिब्रज थी जिसे राजगृह भी कहा जाता है।
बृहद्रथ के बेटे का नाम जरासंध था।
हर्यक वंश का संस्थापक बिम्बिसार था जो 544 में मगध की गद्दी पर बैठा। यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
बिम्बिसार ने ब्रह्मादत्त को हराया और अंग राज्य को मगध राज्य में मिला लिया।
बिम्बिसार ने ही राजगृह यानि गिरिब्रज को अपनी राजधानी बनाया।
महात्मा बुद्ध की सेवा करने के लिए बिम्बिसार ने जीवक नाम के वैध को भेजा।
बिम्बिसार की हत्या उसके बेटे अजातशत्रु ने कर दी 493 में मगध की गद्दी पर बैठा।
अजातशत्रु जैन धर्म को मानता था। अजातशत्रु के मंत्री का नाम वर्षकार था इसकी मदद से ही अजातशत्रु ने वैशाली को जीता था।
अजातशत्रु की हत्या भी उसका बेटा उदायिन कर देता है और 461 में मगध की गद्दी पर उदायिन बैठता है। उदायिन भी जैन धर्म को मानता था और उदायिन ने पाटिलग्राम की स्थापना की। उदायिन हर्यक वंश का अंतिम राजा नागदशक था और उदायिन के बेटे का नाम नागदशक था।
नागदशक का एक मंत्री था जिसका नाम था शिशुनाग। शिशुनाग ने नागदशक को मगध की गद्दी से उतरा और शिशुनाग वंश की स्थापना की 412 ईस्वी में।
शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से बदलकर वैशाली कर ली यानि वैशाली को अपनी राजधानी बनाया।
शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदिवर्धन था।
नंद वंश का संस्थापक महापदम नंद था और नंद वंश का अंतिम राजा घनानंद था जो सिकंदर के समकालीन था मतलब सिकंदर के समय का था।
घनानंद को चन्द्रगुप्त मौर्य ने युद्ध में हराया और मगध में मौर्य वंश की स्थापना की।
सिकन्दर :
सिकन्दर का जन्म 356 ईस्वी में हुआ। सिकन्दर के पिता का नाम फिलिप था।
सिकन्दर अरस्तु का शिष्य था।
सिकन्दर के सेनापति का नाम सेल्यूकस निकेटर था।
सिकन्दर को पंजाब के राजा पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा जिसे झेलम का युद्ध भी कहते है।
सिकन्दर के जल सेनापति का नाम – निर्याकस था।
सिकंदर के घोड़े का नाम – बऊकेफला
सिकंदर ने झेलम नदी के किनारे बऊकेफला नामक नगर बसाया।
सिकन्दर की मृत्यु 323 में बेबीलोन में हुई।
मौर्य साम्राज्य :
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने की।
चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 में हुआ
घनानंद को हारने में चन्द्रगुप्त मौर्य की मदद चाणक्य ने की थी जो बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधान मंत्री बना।
चाणक्य ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था अर्थशास्त्र।
चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म को मानता था और 322 ईस्वी में मगध की गद्दी पर बैठा।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर को 305 ईस्वी में हराया। और सेल्यूकस निकेटर ने अपनी बेटी कार्नेलिया की शादी चन्द्रगुप्त मौर्य से कर दी और काबुल, कन्धार, हेरात और मकरान चन्द्रगुप्त मौर्य को दे दिए।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने भद्रबाहु से जैन धर्म की शिक्षा ली थी।
सेल्यूकस निकेटर का एक राजदूत था जिसका नाम था – मेगास्थनीज़।
मेगास्थनीज़ चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहता था। मेगास्थनीज़ ने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था इंडिका।
मेगास्थनीज़ का उत्तराधिकारी डाइमेकस को माना जाता है।
चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस निकेटर के बीच हुए युद्ध का वर्णन एपिपायानस ने किया है।
चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ईस्वी में कर्णाटक के श्रवण बेलगोला में हुई।
बिन्दुसार :
बिन्दुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी था जो 298 ईस्वी में मगध की गद्दी पर बैठा।
बिन्दुसार का दूसरा नाम अमित्रघात है जिसका मतलब है शत्रु विनाशक।
बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था
बिन्दुसार को वायु पुराण में भद्रसार कहा गया है।
बिन्दुसार को जैन ग्रंथो में सिंहसेन कहा गया था।
बिन्दुसार के शासन में तक्षशिला में 2 विद्रोह हुए जिसको दबाने के लिए पहले बिन्दुसार ने सुसीम को भेजा और फिर अशोक को भेजा।
बौद्ध विद्वान तारानाथ ने बिन्दुसार को 16 राज्यों का विजेता बताया है।
अशोक :
बिन्दुसार का उत्तराधिकारी अशोक था जो 269 ईस्वी में मगध की गद्दी पर बैठा।
मगध की गद्दी पर बैठने से पहले अशोक अवन्ती का राजयपाल था।
पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है।
अशोक ने राजा बनने के 8 साल बाद 261 ईस्वी में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर कब्ज़ा कर लिया।
अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था।
उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की शिक्षा दी।
अशोक ने आजीवकों के रहने के लिए 4 गुफाओ का निर्माण करवाया जिनके नाम है – क़र्ज़, चोपार, सुदामा, विश्व झोपड़ी
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने बेटे महेंदर और अपनी बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
अशोक के अभिलेखों को 3 भागो में बांटा गया है – शिलालेख, स्तम्भलेख, गुहालेख
भारत में शिलालेख का प्रचलन सबसे पहले अशोक ने ही किया था।
अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक, अरमाईक लिपि का प्रयोग हुआ है।
ग्रीक, और अरमाईक लिपि के शिलालेख अफगानिस्तान से मिले है।
खरोष्ठी लिपि का शिलालेख पाकिस्तान से मिला है। और शेष भारत से ब्राह्मी लिपि के शिलालेख मिले है।
अशोक के शिलालेख की खोज 1750 में पादरेति फेनथेलर ने की थी। अशोक के शिलालेख 14 है।
जेम्स प्रिसेप ने सबसे पहले 1837 में अशोक के शिलालेखों को पढ़ा
अशोक के पहले शिलालेख में पशु की बलि दी जाती है उसकी निंदा की गयी है।
अशोक के दूसरे शिलालेख में इंसानो और पशुओ की चिकित्सा के बारे में बताया गया है।
अशोक के तीसरे शिलालेख में धार्मिक नियमो का जिक्र किया गया है।
अशोक के चौथे शिलालेख में धम्म की घोषणा की गयी है।
अशोक के पांचवें शिलालेख में धर्म महामात्रो की नियुक्ति के बारे में बताया गया है।
अशोक के छठे शिलालेख में आत्म नियंत्रण के बारे में कहा गया है।
अशोक के सातवें और आठवें शिलालेख में अशोक की तीर्थ यात्राओं का वर्णन है।
अशोक के नौवें शिलालेख में सच्ची भेट और सच्चे शिष्टाचार के बारे में बताया गया है।
अशोक के दसवें शिलालेख में अशोक ने कहा है के राजा अपनी प्रजा के हित के बारे में सोचे।
अशोक के ग्यारहवें शिलालेख में धम्म की व्याख्या की गयी है।
अशोक के बारहवें शिलालेख में स्त्री महामात्रो की नियुक्ति के बारे में कहा गया है।
अशोक के तेरहवें शिलालेख में अशोक के कलिंग युद्ध का वर्णन किया गया है।
अशोक के चौदहवें शिलालेख में अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन जीने के लिए कहा है।
अशोक के स्तम्भलेख : ये 7 है और सभी ब्राह्मी लिपि में लिखे गए है और 6 अलग अलग जगहों से मिले है
प्रयाग स्तम्भलेख – यह पहले कौशाम्बी में मिला था बाद में अकबर ने इसे इलाहबाद के किले में स्थापित करवाया।
दिल्ली-टोपरा स्तम्भलेख – इसको फ़िरोज़शाह तुगलक टोपरा से दिल्ली लेकर आया था।
दिल्ली-मेरठ स्तम्भलेख – यह पहले मेरठ में था बाद में फिरोजशाह तुगलक इसे दिल्ली लेकर आया।
रामपुरा स्तम्भलेख – यह चम्पारण बिहार में स्थापित है। इसको खोज 1872 में कारलायल ने की थी।
लौरिया अरेराज स्तम्भलेख – यह चम्पारण बिहार में स्थापित है।
लौरिया नन्दनगढ़ स्तम्भलेख – यह चम्पारण बिहार में स्थापित है। इस पर मोर की फोटो बनी हुई है।
कौशाम्बी स्तम्भलेख (प्रयाग स्तम्भलेख) को “रानी का अभिलेख” भी कहा जाता है।
अशोक का सातवां अभिलेख सबसे लम्बा है।
अशोक का शार ऐ कुना अभिलेख ग्रीक, और अरमाईक लिपि में लिखा हुआ मिला है।
अशोक के समय में मौर्य साम्राज्य में 5 प्रान्त होते थे। प्रांतो को चक्र कहा जाता था।
प्रांतों के राजाओ को कुमार या आर्यपुत्र कहा जाता था।
प्रांतों का विभाजन विषय में किया जाता था जो विषयपति के अधीन होता था।
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसके मुखिया को ग्रामिक कहा जाता था।
प्रशासन में सबसे छोटा पद गोप का होता था जो 10 ग्रामो का शासन संभालता था।
मेगास्थनीज़ के अनुसार हर नगर में 6 समितियां होती थी। हर समिति में 5 सदस्य होते थे।
पहली समिति का कार्य – उधोग के कार्यो को देखना
दूसरी समिति का कार्य – विदेशियों की देखरेख करना
तीसरी समिति का कार्य – जन्म मरण का लेखा जोखा रखना
चौथी समिति का कार्य – व्यापर को देखना
पाँचवी समिति का कार्य – जो वस्तुए बनती थी उनकी सेल को देखना वो बिकी है या नहीं।
छठी समिति का कार्य – Sales Tax वसूलना
अशोक के समय में सेना के सबसे बड़े अधिकारी को सेनापति कहा जाता था और युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करने वाले को नायक कहा जाता था।
मेगास्थनीज़ के अनुसार मौर्य सेना का रख रखाव 6 समितियां करती थी
पहली समिति – जल सेना को देखती थी
दूसरी समिति – यातायात की व्यवस्था करती थी
तीसरी समिति – पैदल सैनिको की देख रेख करती थी
चौथी समिति – घोड़ो की सेना जो होती थी उनकी देख रेख करती थी
पाँचवी समिति – हाथियों की सेना की देख रेख करती थी
छठी समिति – रथ सेना की देख रेख करती थी
अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहा गया है और एक ही जगह पर रहकर काम करने वाले गुप्तचर को संस्था कहा जाता था और एक जगह से दूसरी जगह काम करने वाले को संचार कहा जाता है।
अशोक के समय में न्यायालय के न्यायाधीश को राजुक कहा जाता था।
सरकारी जमीन को सीता भूमि कहा जाता था। और जिस भूमि पर बिना बारिश के अच्छी खेती होती थी उस भी को अदेवमातृक कहा जाता था।
वैश्यवृति को अपनाने वाली महिला को रूपाजीवा कहा जाता था।
मौर्य वंश का अंतिम शासक ब्रहद्रथ था। इसकी हत्या इसी के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और मगध राज्य पर शुंग वंश की नीव डाली। और यह एक ब्राह्मण था।
ब्राह्मण साम्राज्य :
पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईस्वी में मगध राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और अपनी राजधानी विदिशा में स्थापित की।
भरहूत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया। और पुष्यमित्र शुंग ने 2 बार अश्वमेघ यज्ञ करवाया। ये यज्ञ पतंजलि ने करवाए थे।
शुंग वंश का अंतिम राजा देवभूति था। इसकी हत्या 73 ईस्वी में वासुदेव ने कर दी जो कण्व वंश का था और मगध पर कण्व वंश की स्थापना की।
कण्व वंश का अंतिम राजा सुशर्मा था जिसकी हत्या 60 ईस्वी में शिमुख ने कर दी जो सातवाहन वंश का था और मगध पर सातवाहन वंश की स्थापना की।
सातवाहन वंश को आंध्र वंश भी कहा जाता है और सातवाहन वंश के राजाओ ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान को बनाया जो आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में है।
सातवाहन वंश ने चांदी, तांबे, शीशे और कांस्य के सिक्के चलाये।
सातवाहन वंश ने ही सबसे पहले ब्राह्मणो को भूमि दान करने की प्रथा चलायी।
सातवाहन वंश की भाषा प्राकृत थी और लिपि ब्राह्मी थी।
सातवाहन वंश का समाज मातृपरधान था।
सातवाहन वंश ने अजंता और एलोरा की गुफाओ का निर्माण करवाया। और अमरावती कला का विकास किया।
भारत के यवन राज्य :
भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रमणकारी :
सबसे पहले भारत पर यूनानियों ने आक्रमण किया उसके बाद शक ने आक्रमण किया उसके बाद पहलव ने आक्रमण किया और फिर कुषाणों ने आक्रमण किया।
भारत पर सबसे पहले बैक्ट्रिया के राजा डेमिट्रियस ने आक्रमण किया। इसने 190 ईस्वी में भारत पर आक्रमण किया था और इसने शाकल को अपनी राजधानी बनाया। इसे ही हिन्द-यूनानी और बैक्ट्रिया यूनानी कहा जाता है।
हिन्द-यूनानी शासको में सबसे अधिक जो लोकप्रिय हुआ वो था – मिनान्डर
मिनान्डर ने बौद्ध धर्म की शिक्षा ली नागार्जुन से जिसे नागसेन भी कहा जाता है।
मिनान्डर के प्र्शन और नागार्जुन के उत्तर एक पुस्तक में शामिल किये गए है जिसका नाम है – मिलिन्दपन्हो या मिलिन्दप्र्शन
भारत में सबसे पहले सोने के सिक्के हिन्द-यूनानियों ने ही चलाये थे।
हिन्द-यूनानी शासको ने एक कला चलाई हेलेनिस्टिक आर्ट कहा जाता है। भारत में गंधार कला इसका एक उदहारण है।
शक वंश :
यूनानियों के बाद शक भारत में आये और इनकी 5 शाखा भारत में आयी और सबने अपनी अलग अलग राजधानी बनाई।
पहली शाखा ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया
दूसरी शाखा ने पंजाब पर कब्ज़ा किया राजधानी तक्षशिला को बनाया।
तीसरी शाखा ने मथुरा पर कब्ज़ा किया
चौथी शाखा ने पश्चमी भारत पर कब्ज़ा किया
पांचवी शाखा ने ऊपरी दक्कन पर कब्ज़ा किया।
शक मध्य एशिया के निवासी थे और चरागाह की खोज में भारत आये थे।
58 ईस्वी में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शको को हरा दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। शको पर विजय प्राप्त हुई थी उसकी खुशी में एक नया विक्रम संवत शुरू हुआ और विक्रमादित्य की उपाधि एक लोकप्रिय उपाधि बन गयी और 14 शासको ने ये उपाधि धारण की जिसमे सबसे अधिक विक्रमादित्य की उपाधि चन्द्रगुप्त दितीय ने धारण की या ये सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ।
शको का सबसे शक्तिशाली राजा रुद्रदामन था इसने गुजरात के काठियावाड़ की सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।
रुद्रदामन संस्कृत का प्रेमी था और इसी ने सबसे पहले संस्कृत भाषा में सबसे लम्बा अभिलेख (गिरनार अभिलेख) जारी किया।
शक के बाद पहलव शासक भारत में आये और पह्लव के बाद कुषाण शासक भारत में आये।
कुषाण शासक :
इनको यूची और तोखरी भी कहते है। यूची कबीला 5 भागो में बट गया था जिसमे से एक था – कुषाण
कुषाण वंश के संस्थापक – कुजुल कडफिसेस
कुषाण वंश का शक्तिशाली राजा – कनिष्क
कुषाण वंश की 2 राजधानी थी – पहली पेशावर या पुरुषपुर और दूसरी मथुरा
कनिष्क ने 78 ईस्वी में एक संवत चलाया जिसका नाम था – शक संवत (जिसे भारत सरकार भी प्रयोग करती है)
कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था।
कनिष्क का राजवैध – चरक था (जिसने चरकसंहिता की रचना की) यह आयुर्वेद का विख्यात विद्धान था।
कनिष्क के राजकवि का नाम – अश्वघोष
अश्वघोष ने बुद्धचरित की रचन की जिसे बौद्धों की रामायण कहा जाता है।
भारत का आइंस्टाइन – नागार्जुन
नागार्जुन की पुस्तक का नाम – माध्यमिक सूत्र
कनिष्क की मौत 102 ईस्वी में हुई। गंधार शैली और मथुरा शैली का विकास कनिष्क के समय में ही हुआ।
कुषाण वंश का अंतिम राजा – वासुदेव था।
रेशम मार्ग पर नियंत्रण रखने वाले कुषाण ही थे। रेशम बनाने की तकनीक का अविष्कार चीन ने किया।
गुप्त साम्राज्य :
गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी में हुआ कौशाम्बी में।
गुप्त वंश का संथापक – श्रीगुप्त
श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी – घटोत्कच
गुप्त वंश का महान राजा – चन्द्रगुप्त 320 ईस्वी में गद्दी पर बैठा और इसने “महाराजाधिराज” की उपाधि धारण की
गुप्त संवत की शुरुआत चन्द्रगुप्त ने ही की।
चन्द्रगुप्त का उत्तराधिकारी – समुद्रगुप्त
समुद्रगुप्त 335 ईस्वी में गद्दी पर बैठा और समुद्रगुप्त को ही “भारत का नेपोलियन” कहा जाता है।
समुद्रगुप्त का दरबारी कवि – हरिषेण (इसने इलाहबाद लेख की रचना की)।
समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था इसने “अश्वमेघकर्ता” की उपाधि धारण की। और विक्रमंक की उपाधि भी धारण की। इसे कविराज भी कहा जाता है।
समुद्रगुप्त ने सिक्के चलाये जिन पर वो वीणा बजाते हुए दिखाए गए है इससे पता चलता है की समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था।
समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी – चन्द्रगुप्त द्वितिय था
चन्द्रगुप्त द्वितिय के समय में चीनी यात्री फाहियान भारत आया।
चन्द्रगुप्त का राजकवि – शाब था।
चन्द्रगुप्त का सचिव – वीरसेन था जो की एक पंडित और कवि था।
चन्द्रगुप्त के नवरत्न में कालिदास सबसे खास थे।
चन्द्रगुप्त का उत्तराधिकारी – कुमारगुप्त (इसका दूसरा नाम गोविन्दगुप्त था)
कुमारगुप्त ने नालंदा विश्वविधालय की स्थापना की।
कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी – स्कन्धगुप्त था
स्कंदगुप्त ने गिरनार पर्वत पर सुदर्शन झील को दुबारा बनवाया।
अंतिम गुप्त शासक – विष्णुगुप्त था
गुप्त साम्राज्य की 4 प्रादेशिक इकाइयां थी
सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई – देश थी जिसके शासक को गोप्न कहा जाता था
दूसरी प्रादेशिक इकाई – भुक्ति थी जिसके शासक को उपरिक कहा जाता था।
तीसरी प्रादेशिक इकाई – विषय थी जिसके शासक को विषयपति कहा जाता था। ये भुक्ति इकाई के नीचे थी।
चौथी प्रादेशिक इकाई – ग्राम थी जिसके शासक को ग्रामिक कहा जाता था
पुलिस का मुख्य अधिकारी दण्डपाशिक कहलाता था और पुलिस के साधारण कर्मचारी चाट और भाट कहलाते थे।
गुप्तकाल में सिंचाई के लिए रहट या घंटी यंत्र का प्रयोग होता था।
गुप्तकाल में व्यापर का सबसे बड़ा केंद्र – उज्जैन
गुप्तकाल के राजाओ ने सबसे अधिक सोने की मुद्रा चलाई और इनको दीनार कहा गया।
पहली बार सती होने का प्रमाण – ऐरण अभिलेख से मिलता है जिसे भानुगुप्त ने लिखा था।
गुप्तकाल में वैश्यवृति करने वाली महिलाओ को – गणिका कहते थे।
गुप्तकाल के सभी राजा वैष्णव धर्म को मानते थे और उन्होंने इसको राजधर्म बना लिया था, विष्णु का वाहन गुरुड़ गुप्तकाल के राजाओ का राजचिन्ह होता था।
देवगढ़ का दशावतार मंदिर वैष्णव धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अवशेष है।
अजन्ता की 29 गुफाओ में से अब केवल 6 गुफाए बची है जिनमे से गुफा नंबर 16 और 17 ही गुप्तकालीन गुफाए है।
गुफा नंबर 16 – मरणासन्न राजकुमारी का चित्र है।
गुफा नंबर 17 – चित्रशाला कहा जाता है इस गुफा को और इस गुफा में बुद्ध के जीवन मरण से सम्बंधित चित्र बनाये गए है।
अजन्ता की गुफाए बौद्ध धर्म की महायान शाखा से सम्बंधित है।
बाइबिल के बाद सबसे प्रचलित ग्रंथ – पंचतंत्र (विष्णु शर्मा ने लिखा इसको गुप्तकाल में)
आर्यभट्ट के ग्रंथ – आर्यभट्टीयम और सूर्यसिद्धांत यह पहला भारतीय नक्षत्र वैज्ञांनिक था जिसने ये बताया की पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
ब्रह्मगुप्त, गुप्तकाल के सबसे महान नक्षत्र वैज्ञांनिक थे इन्होने न्यूटन के सिद्धांत की पूर्व कल्पना की थी। यानि न्यूटन के सिद्धांत को पहले ही बता दिया था।
गुप्तकाल में ही पलकाण्व ने पशु चिकित्सा पर हस्त्यायुर्वेद लिखा।
गुप्तकाल के राजाओ की शासकीय भाषा – संस्कृत
गुप्तकाल में चांदी के सिक्को को रूप्यका कहा जाता था।
मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्तकाल में ही हुआ।
शूद्रक का लिखा हुआ नाटक – मृच्छ कटिकम
कालिदास की कृति – अभिज्ञान शाकुंतलम (इसका अनुवाद यूरोपीय भाषाओ में भी हुआ है)
भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग – गुप्तकाल
पुष्यभूति वंश :
गुप्तकाल के बाद पुष्यभूति वंश के शासको ने राज किया।
पुष्यभूति वंश के संथापक – पुष्यभूति
पुष्यभूति वंश की राजधानी – थानेश्वर (हरियाणा के कुरुक्षेत्र में)
पुष्यभूति वंश का शक्तिशाली राजा – प्रभाकर वर्धन
प्रभाकर वर्धन की 2 उपाधिया – परम् भट्टारक और महाराजाधिराज
प्रभाकर वर्धन के 2 बेटो के नाम – राज्यवर्धन और हर्षवर्धन
प्रभाकर वर्धन की बेटी का नाम – राज्यश्री
राज्यश्री के पति का नाम – ग्रहवर्मा (यह कन्नौज का राजा था उस समय)
मालवा के राजा देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बना लिया
राज्यवर्धन ने देवगुप्त को मार डाला लेकिन उसके बाद देवगुप्त के दोस्त शशांक ने राज्यवर्धन को मार डाला।
राज्यवर्धन की मौत के बाद हर्षवर्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा।
हर्षवर्धन का दूसरा नाम – शिलादित्य
हर्षवर्द्धन ने शशांक को हरा दिया और कन्नौज पर कब्ज़ा कर लिया। और कन्नौज को ही अपनी राजधानी बना लिया।
हर्षवर्द्धन और पुलकेशिन दितीय के बीच युद्ध हुआ नर्मदा नदी के तट पर और इसमें हर्षवर्द्धन की हार हुई और पुलकेशिन जीत गया।
हर्षवर्द्धन के समय चीनी यात्री भारत आया – ह्वेनसाँग
हर्षवर्द्धन के दरबारी कवि – बाणभट्ट
बाणभट्ट की रचना – हर्षचरित और कादम्बरी
बाणभट्ट के गुरु का नाम – भर्चु
हर्षवर्द्धन की रचनाएँ – प्रियदर्शिका, रत्नावली, नागानन्द
हर्षवर्द्धन – भारत का अंतिम हिंन्दू सम्राट
हर्षवर्द्धन के मंत्री को – आमात्य कहा जाता था
हर्षवर्द्धन के समय प्रांतो को – भुक्ति कहा जाता था और इसका शासक उपरिक कहलाता था।
शासन की सबसे छोटी इकाई – ग्राम और इसके शासक को ग्रामाक्ष पटलिक कहा जाता था।
हर्षवर्द्धन के समय में सिचाईं का साधन – तुलायंत्र (जलपंप)
हर्षवर्द्धन के समय में सूती कपड़ो के लिए प्रशिद्ध – मथुरा
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश :
पल्लव वंश
चोल वंश
राष्ट्रकूट वंश
चालुक्य वंश
पल्लव वंश :
पल्लव वंश का संस्थापक – सिंहविष्णु
पल्लव वंश की राजधानी – काँची (तमिलनाडु की काँचीपुरम)
सिंहविष्णु अनुयायी था – वैष्णव धर्म का
सिंहविष्णु के दरबारी लेखक – भारवि (किरातार्जुनियम लिखी थी इसने)
पल्लव वंश के प्रमुख राजा – महेंद्र वर्मन, नरसिंह वर्मन, परमेश्वर वर्मन
मतविलास प्रहसन की रचना – महेंद्र वर्मन ने की थी
महाबलीपुरम के मंदिर का निर्माण – नरसिंह वर्मन ने बनवाया जिन्हे रथ कहा गया है उनको था। इन रथ मंदिरो की संख्या 7 है सबसे छोटा द्रोपदी रथ है।
मामल्ल पुरम के गणेश मंदिर का निर्माण – परमेश्वर वर्मन
काँची के कैलाश नाथ मंदिर का निर्माण – नरसिंह वर्मन दितीय . इसी मंदिर से द्रविड़ कला की शुरुआत हुई थी।
नरसिंह वर्मन दितीय के दरबारी लेखक – दण्डी था इसने “दशकुमारचरित“ लिखा।
चोल वंश :
9वी शताब्दी में चोल वंश का उदय हुआ।
चोल वंश के संस्थापक – विजयालय
चोल वंश की राजधानी – तांजाय (तंजौर या तंजावूर)
तांजाय के वास्तुकार – परूथच्च्न
विजयालय ने उपाधि धारण की – नरकेसरी
चोलो का स्वतंत्र राज्य स्थापित किया – आदित्य प्रथम ने
आदित्य प्रथम ने उपाधि धारण की – कोदण्ड राम
चोल साम्राज्य का सबसे अधिक विस्तार – राजेन्द्र प्रथम के समय में हुआ
राजेन्द्र प्रथम ने उपाधि धारण की – गैंगे कोडचोल
चोल वंश का अंतिम राजा – राजेन्द्र तृतीय था
चोल साम्राज्य की प्रमुख विशेषता – स्थानीय स्वशासन
चोल सेना का सबसे प्रमुख अंग – पदाति सेना
चोल काल में सोने के सिक्के – कलंजु कहलाते थे
चोल साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह – कावेरी पट्टनम
चोल साम्राज्य में सड़को की देखभाल – बगान समिति करती थी
राष्ट्रकूट वंश :
राष्ट्रकूट वंश के संस्थापक – दन्तिदुर्ग
राष्ट्रकूट वंश की राजधानी – मान्यखेत ( अभी इसका नाम मालखेड़ है)
राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख राजा – ध्रुव, कृष्ण प्रथम, कृष्ण तृतीय, अमोघवर्ष और इन्द्र तृतीय
एलोरा के प्रशिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण – कृष्ण प्रथम ने कराया
राजा ध्रुव को धारावर्ष भी कहा जाता है।
ध्रुव ने कन्नौज पर कब्ज़ा किया था और ये ऐसा करने वाला राष्ट्रकूट का पहला राजा था।
अमोघवर्ष जैनधर्म का अनुयायी था और इसने तुंगभद्रा नदी में जलसमाधि लेकर अपना जीवन त्याग दिया था।
इन्द्र तृतीय के समय अरब निवासी भारत आया था उसका नाम था – अलमसूदी (अरबी निवासी था)
राष्ट्रकूट का अंतिम शासक – कृष्ण तृतीय
कृष्ण तृतीय के दरबारी कवि – पोन्न
पोन्न की रचना – शान्तिपुराण
एलोरा की गुफाओ का निर्माण – राष्ट्रकूट शासको ने
एलोरा की 34 गुफाएँ है – 1 से 12 तक बौद्ध धर्म की गुफाएँ है और 13 से 29 तक हिन्दू धर्म की गुफाएँ है और 30 से 34 तक जैन धर्म की।
गुफा नंबर 15 में विष्णु के नरसिंह अवतार को दिखाया गया है।
चालुक्य वंश :
चालुक्य वंश 3 प्रकार के हुए – पहले कल्याणी दूसरे वातापी और तीसरे बेंगी
चालुक्य वंश कल्याणी :
चालुक्य वंश कल्याणी की स्थापना – तैलप दितीय
चालुक्य वंश का शक्तिशाली राजा – विक्रमादित्य VI
विक्रमादित्य VI के दरबार में रहने वाले प्रमुख लोग – विल्हण और विज्ञानेश्वर
विल्हण की रचना – विक्रमांक देवचरित
विज्ञानेश्वर की रचना – मिताक्षरा
चालुक्य वंश वातापी :
चालुक्य वंश वातापी के संस्थापक : जय सिंह
चालुक्य वंश वातापी की राजधानी – वातापी
चालुक्य वंश वातापी का सबसे शक्तिशाली राजा – पुलकेशिन II
पुलकेशिन II ने हर्षवर्द्धन को हरा कर परमेश्वर की उपाधि धारण की।
ऐहोल अभिलेख का संबंध – पुलकेशिन II से है
वातापी का निर्माणकर्ता – कीर्तिवर्मन
चालुक्य वंश वातापी का अंतिम राजा – कीर्तिवर्मन II
ऐहोल को मंदिरो का शहर भी कहा जाता है।
चालुक्य वंश बेंगी :
चालुक्य वंश बेंगी का संस्थापक – विष्णुवर्धन
चालुक्य वंश बेंगी की राजधानी – बेंगी (आंध्रप्रदेश में)
चालुक्य वंश बेंगी का सबसे शक्तिशाली राजा – विजयादित्य
विजयादित्य के सेनापति का नाम – पंडरंग
भारत के सीमावर्ती राजवंश :
पालवंश :
पालवंश के संस्थापक – गोपाल
पालवंश की राजधानी – मुंगेर
पालवंश का महान शासक – धर्मपाल
धर्मपाल ने स्थापना की – विक्रमशिला विश्वविधालय
सेनवंश :
सेनवंश की स्थापना – सामन्त सेन
सेनवंश की राजधानी – नदिया
सेनवंश के प्रमुख राजा – विजयसेन, बल्लाल सेन और लक्ष्मण सेन
बल्लाल सेन की रचना – दानसागर और अदभुत सागर
लक्ष्मण सेन का सचिव या मुख्यमंत्री – हलायुद्ध
लक्ष्मण सेन – बंगाल का अंतिंम हिन्दू शासक
सेन राजवंश पहला राजवंश था जिसने अपना अभिलेख हिंदी में लिखवाया।
गुर्जर प्रतिहार वंश :
गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक – नागभट्ट I
गुर्जर प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली राजा – मिहिरभोज
गुर्जर प्रतिहार वंश की राजधानी – कन्नौज
गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम राजा – यशपाल
नोट – दिल्ली नगर की स्थापना तोमर राजा अनंगपाल ने 11वी शताब्दी में की
गहड़वाल वंश :
गहड़वाल वंश का संस्थापक – चन्द्रदेव
गहड़वाल वंश की राजधानी – वाराणसी
गहड़वाल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा – गोविन्द चन्द्र
गहड़वाल वंश का अंतिम शासक – जयचन्द
जयचन्द को मुहम्मद गौरी ने 1194 में चन्दावर के युद्ध में मार डाला था।
चौहान वंश :
चौहान वंश का संस्थापक : वासुदेव
चौहान वंश के पहली राजधानी – अहिच्छेत्र
चौहान वंश की बाद में राजधानी – अजमेर
अजमेर की स्थापना – अजयराज II
चौहान वंश का सबसे शक्तिशाली राजा – विग्रहराज IV
विग्रहराज IV के राजकवि – सोमदेव
चौहान वंश का अंतिम शासक – पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज चौहान का राजकवि – चन्दवरदाई
चन्दवरदाई की रचना – पृथ्वीराज रासो
परमार वंश :
परमार वंश का संस्थापक – उपेन्द्रराज
परमार वंश की राजधानी – धारा नगरी
परमार वंश का शक्तिशाली राजा – राजा भोज
राजा भोज ने निर्माण करवाया – भोजपुर नगर और भोजपुर झील का
चन्देल वंश :
चन्देल वंश का संस्थापक – नन्नुक
चन्देल वंश की राजधानी – खुजराहो
चन्देल वंश का शक्तिशाली राजा – यशोवर्मन
चन्देल वंश का अंतिम राजा – परमर्दिदेव (ये कुतुबुद्दीन ऐबक का दास बन गया था जिसके कारण अजयदेव ने इसकी हत्या कर दी)