Mugal Vansh History Founder List PDF – मुग़ल वंश साम्राज्य वंशावली हिस्ट्री (1526-1857)
मुग़ल वंश (1526-1857) शक्तिशाली मुग़ल शासन तो 1526-1707 तक रहा।
बाबर का जन्म 1480 ईस्वी में हुआ।
बाबर सिर्फ 14 साल की आयु में ही फरगना नामक कस्बे की गद्दी पर बैठा था।
बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1518 में भीरा के किले पर किया। भीरा का किला आगरा में है।
बाबर ने भारत पर दूसरा आक्रमण 1520-1521 में सियालकोट के किले पर किया।
बाबर को भारत में किसने बुलाया
दौलत खान लोदी – यह पंजाब का गवर्नर था यानि पंजाब का सूबेदार था।
राणा सांगा – राजस्थान का राजपूत था।
आलम खान – इब्राहिम लोदी का चाचा था।
ये तीनो मिलकर दिलावर खान के साथ 1525 में काबुल गए और वहा बाबर से मिले। दिलावर खान दौलत खान लोदी का बेटा था।
इन सब ने मिलकर बाबर से कहा की आप दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर दो हम आपका साथ देंगे। आप इब्राहिम लोदी की हत्या कर दीजिये।
बाबर के युद्ध – शार्ट ट्रिक के साथ
पानी पिया, खाना खाया, चाँद देखा, घर गया, और मर गया।
1526 – पानीपत का पहला युद्ध (बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच)।
1527 – खानवा का युद्ध (बाबर और राणा सांगा के बीच)।
1528 – चंदेरी का युद्ध (बाबर और मेदिनी राय के बीच)।
1529 – घाघरा का युद्ध (बाबर और महमूद लोदी के बीच)।
1530 – बाबर की मृत्यु खाने में जहर की वजह से (इब्राहिम लोदी की माँ ने जहर मिलाया था बाबर के खाने में)।
मृत्यु के बाद बाबर को 2 जगह दफनाया गया पहले आगरा में। जहा बाद में “नूर ऐ अफगान” बाग बनाया गया जिसे आराम बाग भी कहते है।
और दूसरी बार बाबर को काबुल में दफनाया गया।
बाबर ने सड़क मापने का एक पैमाना दिया था जिसे “गज़ ऐ बाबरी” कहा जाता है।
बाबर के ऊपर एक पुस्तक लिखी गयी जिसका नाम “तुजुक ऐ बाबरी” है।
भारत में सबसे पहले बारूद और तोपखाने का प्रयोग बाबर ने ही किया था। मुस्तफा और उस्ताद अली 2 व्यक्ति थे जो तोप चलाने में माहिर थे उस समय। पानीपत के युद्ध में सबसे पहले बारूद और तोपखानों का प्रयोग हुआ था इब्राहिम लोदी को हराने के लिए।
हुमायुं (1530-1540) (1555-1556) – बाबर की मृत्यु के बाद हुमायुं 1530 में गद्दी पर बैठा। यह बाबर का बेटा था।
हुमायुं ने अपना साम्राज्य अपने तीनो भाइयो में बाट रखा था। भाइयो के नाम – कामरान, हिंदल, अस्करी।
राणा सांगा की पत्नी ने हुमायुं के पास राखी भेजी थी। और हुमायुं ने भी उसकी मदद की।
1532 – चुनार का युद्ध – हुमायुं और शेरशाह शुरी के बीच हुआ।
इस युद्ध में हुमायुं की जीत हुई और शेरशाह सूरी और हुमायुं के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत हुमायुं ने शेरशाह सूरी को कहा की आपको अपना बेटा गिरवी रखना पड़ेगा।
हुमायुं ने दिल्ली में “दीनपनाह” नगर की स्थापना की।
1539 – चौसा का युद्ध – हुमायुं और शेरशाह सूरी के बीच
यह युद्ध कर्मनाशा नदी के किनारे पर हुआ था। इस युद्ध में हुमायुं हार गया था और शेरशाह सूरी जीता था। हुमायुं को मरा हुआ समझ कर शेरशाह सूरी चला गया और बाद में एक नाव चलाने वाले ने हुमायुं की जान बचाई।
1540 – कन्नौज का युद्ध – हुमायुं और शेरशाह सूरी के बीच
इस युद्ध में भी हुमायुं की हार हुई और इस युद्ध के बाद उसे भारत छोड़ना पड़ा।
1542 में हुमायुं की पत्नी हमीदा बनो ने अमरकोट में एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम “जलालुद्दीन मोहम्मद” रखा गया जो बाद में अकबर के नाम से जाना गया। तो अकबर के बचपन का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद था।
1555 में हुमायुं ने दुबारा भारत पर आक्रमण किया। क्योकि 1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गयी और शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद उसका बेटा इस्लामशाह सूरी गद्दी पर बैठा जो इतना शक्तिशाली नहीं था तो हुमायु ने दुबारा भारत पर आकर्मण कर दिया।
1556 में पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने से हुमायुं की मृत्यु हो गयी।
हुमायुं की पत्नी हाजी बेगम ने हुमायुं का मकबरा बनवाया दिल्ली में।
हुमायुं को “बिना ताज का बादशाह” भी कहा जाता है ।
हुमायुं ने “दिल्ली में मीना बाजार” की स्थापना की ।
अबुल फज़ल ने हुमायुं को “इंसान ऐ कामिल” कहा था।
हुमायुं ज्योतिष में विश्वास रखता था और इसलिए वह सातो दिन अलग अलग रंग के कपडे पहना करता था।
अकबर (1556-1605) – अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट में हुआ था।
अकबर के पिता का नाम हुमायुं और माता का नाम हमीदा बानो था। हुमायुं तैमूर खानदान से था और माता चंगेज़ खा खानदान से थी।
इस प्रकार अकबर का सम्बन्ध तुर्को से भी था और मंगोलो से भी था।
अकबर का राज्याभिषेक बैरम खान की देखरेख में हुआ। और यह पंजाब के गुरदासपुर जिले के कलानौर नामक स्थान पर हुआ और 14 फरवरी 1556 में हुआ। अकबर का राज्याभिषेक मिर्ज़ा अबुल कासिम ने किया था।
1556 ईस्वी में अकबर ने बैरम खा को अपना वजीर बना लिया और उसे “खान ऐ खाना” की उपाधि दी।
1560 ईस्वी में बैरम खान की मृत्यु हो गयी।
अकबर के शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ –
1562 में अजमेर का दौरा।
1562 ईस्वी में ही अकबर ने युद्ध में जो बंदी बनते थे उनको दास बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया।
1563 ईस्वी में तीर्थ यात्रा पर जो Tax लगता था उसको समाप्त कर दिया।
1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया।
1571 में फतेहपुर सिकरी की स्थापना की।
1572 में बुलंद दरवाजे का निर्माण कराया।
1574 में मनसबदारी प्रथा शुरू की।
1575 में फतेहपुर सिकरी में इबादत खाना बनवाया। इबादत खाना नमाज़ पढ़ने का कमरा होता था।
1576 में पुरे साम्राज्य को 12 सुबो में बाट दिया।
1578 में इबादत खाने को सभी धर्मो के लिए खोला गया और यह धर्म संसद बना।
1582 में तौहीदे इलाही यानि दीन ऐ इलाही धर्म की घोषणा की।
1582 में ही टोडरमल ने दहशाला प्रणाली लागु की। यानि 10 साल में एक बार Tax देना।
अकबर के सैन्य अभियान –
पहला अभियान – 1561 में मालवा का अभियान था। मालवा का राजा बज बहादुर था।
दूसरा अभियान – 1561 में चुनार का अभियान था। मुग़ल सेना को लीड कर रहा था आसफ खान।
तीसरा अभियान – 1564 में गोंडवाना का अभियान था। मुग़ल सेना को लीड कर रहा था आसफ खान और वीर नारायण को हराया था।
चौथा अभियान – 1562 से 1570 तक चला और इसके तहत अकबर ने कई राजपूत राज्यों को अपने अधीन कर लिया।
पांचवा अभियान – 1571 में गुजरात का अभियान था। गुजरात का राजा मुजफ्फर खान था।
छठा अभियान – 1574 से 1576 बंगाल और बिहार का अभियान था। वहा के शासक दाऊद खान था।
नोट – अकबर ने 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को हरा दिया था।
सातवां अभियान – 1581 में काबुल का अभियान था। काबुल के राजा हाकिम मिर्ज़ा को अकबर और मानसिंह ने हराया।
आठवां अभियान – 1586 में कश्मीर का अभियान था और वहा के राजा युसूफ खा और याकुत खा को हराया था। मुग़ल सेनापति कासिम खान और भगवान दास ने हराया था।
नौवा अभियान – 1591 में सिंध का अभियान था जिसमे जानी बेग को हराया था। मुग़ल सेनापति अब्दुर्रहमान ने।
दसवां अभियान – 1591 में ओडिशा का अभियान था जिसमे निशार खा को हराया मुग़ल सेनापति मानसिंह ने।
ग्यारहवा अभियान – 1595 में बलूचिस्तान का अभियान था। पन्नी अफगान को हराया।
बारहवां अभियान – 1595 में कंधार का अभियान था। मुजफ्फर हुसैन ने खुद अपना राज्य सौंप दिया।
तेरहवा अभियान – 1601 में असीरगढ़ का अभियान था। इसमें अकबर ने मीर बहादुर को हराया था और यह अकबर की अंतिम जीत थी।
अकबर के कार्य –
भू राजस्व कर वसूलने के लिए किरोड़ी नाम के अधिकारियो को चुना।
कृषि योग्य भूमि को 3 भागो में बाट दिया था – पोलज , चाचर, बंजर।
पोलज – हर साल खेती होती थी।
चाचर – 2 साल छोड़ कर खेती होती थी।
बंजर – जिसमे कोई खेती नहीं होती थी।
अकबर के दरबार का दौरा करने वाला पहला अंग्रेज रॉल्फ फिच था।
अकबर के नवरत्न –
अबुल फज़ल – इसने अकबरनामा और आइना ऐ अकबरी लिखी थी
फ़ैज़ी – यह अबुल फज़ल का छोटा भाई था और यह अकबर के बेटे जहाँगीर का गुरु भी था।
बीरबल – दीन ऐ इलाही को इसने स्वीकार किया था। दीन ऐ इलाही को स्वीकार करने वाला पहला हिन्दू था।
टोडरमल – यह अकबर का वित् मंत्री था और कृषि मंत्री था। इसने ही दहशाला प्रणाली शुरू करवाई थी।
मानसिंह – अकबर का सलाहकार था।
तानसेन – यह संगीत में रूचि रखता था।
रहीम खान – बहरम खा का बेटा था लेकिन बाद में अकबर ने इसको अपना सौतेला पुत्र बनाया और बहरम खा की पत्नी से शादी कर ली।
मुल्ला दो प्याजा – यह अकबर के धार्मिक कार्य करता था।
फ़क़ीर आजिजाओ दीन – यह अकबर के नौ रत्नो में से एक था।
1605 में अकबर की मृत्यु हुई और अकबर को आगरा के निकट सिकंदरा में दफनाया गया।
जहाँगीर (1605-1627) – जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त 1559 को हुआ।
जहाँगीर के पिता का नाम अकबर था और माता का नाम मरियम उज जमानी था ।
जहाँगीर के गुरु का नाम फ़ैज़ी था जो अबुल फज़ल का भाई था।
जहाँगीर के काल को चित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
जहाँगीर का पहला विवाह जयपुर के राजा भगवन दास की बेटी मानबाई से 1685 में हुआ।
जहाँगीर के बड़े बेटे खुसरो का जन्म मानबाई से ही हुआ था।
जहाँगीर का दूसरा विवाह नूरजहाँ से हुआ था – जहाँगीर का एक सेनापति था शेर खान या शेर अफगानी। और उसकी पत्नी थी मेहरुत्रिसा।
जहाँगीर को मेहरुत्रीसा पसंद आ गयी तो उसने अपने सेनापति यानि शेर खा को बोला की मुझे इससे शादी करनी है तो शेर खा ने कहा की महाराज ये मेरी पत्नी है और मेरे जीते जी आप इससे शादी नहीं कर सकते और जहाँगीर ने शेर खा को ही मरवा दिया और मेहरुत्रीसा से शादी कर ली और बाद में उसका नाम नूरजहाँ रखा और उसे बादशाह बेगम की उपाधि भी दी।
जंजीर ऐ आदिल – जहाँगीर ने आगरा के किले से थोड़ी दूर एक स्थान से , आगरा के किले तक घंटिया लगवाई जिसमे एक (गोल्डन चेन) स्वर्ण जंजीर भी थी। पीड़ित व्यक्ति घंटिया बजाकर जहाँगीर से फरियाद कर सकता था। इसको न्याय की जंजीर भी कहा जाता है।
ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यापर करने की अनुमति 1611 – जहाँगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी से आये कैप्टन हॉकिंस को भारत में व्यापर करने की अनुमति दे दी थी।
कैप्टन हॉकिंस 1608 में भारत आया था और 1609 से 1611 तक जहाँगीर के दरबार में काम किया।
जहाँगीर ने दो अस्पा और तीन अस्पा की प्रथा चलाई।
दो अस्पा – मनसबदार को दुगने घोड़े रखने पड़ते थे जितने उनके पास सैनिक है उससे।
तीन अस्पा – मनसबदार को तीन गुना घोड़े रखने पड़ते थे जितने उनके पास सैनिक है उससे।
जहाँगीर ने तुजुक ऐ जहागिरी की रचना की फारसी भाषा में।
जहाँगीर ने सिकंदरा में अकबर का मकबरा बनवाया और लाहौर की मस्जिद का निर्माण किया।
जहाँगीर के बेटे खुसरो ने जहाँगीर का विद्रोह करना शुरू कर दिया और खुसरो आगरे के किले से भाग निकला और तरनतारन नमक जगह पर सिक्ख गुरु अर्जुन देव से मिला और उसको अपना गुरु बना लिया। लेकिन 1622 में खुर्रम ने खुसरो की हत्या करवा दी। जहाँगीर का ही आदेश था।
खुर्रम को ही बाद में शाहजहाँ कहा गया।
जहाँगीर ने ही सिक्ख गुरु अर्जुन देव को भी मरवा दिया। ये सिक्खो के पांचवें गुरु थे।
जहाँगीर ने कश्मीर का शालीमार बाग बनवाया और निशांत बाग भी बनवाया जो कश्मीर में ही है।
जहाँगीर ने अपने राज्याभिषेक के सातवे साल यानि 1612 में हिन्दुओ की प्रसिद त्यौहार रक्षा बंधन मनाया। जिसको निगाह ऐ दश्त नाम दिया गया।
शाहजहाँ (1628-1658) – शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था।
शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 को लाहौर में हुआ।
शाहजहाँ के पिता का नाम जहाँगीर और माता का नाम जोधाबाई था।
शाहजहाँ को शाहजहाँ की उपाधि जहाँगीर ने ही दी थी अहमदनगर जीतने के बाद।
शाहजहाँ का काल भवन निर्माण कला का स्वर्ण युग माना जाता है।
शाहजहाँ के भी 2 विवाह हुए थे। शाहजहाँ का पहला विवाह सफ़वी वंश की राजकुमारी मिर्ज़ा हुसैन सफ़वी की बेटी से हुआ था 1610 ईस्वी में।
शाहजहाँ का दूसरा विवाह आसफ खा की बेटी अर्जुमंद बनो बेगम से हुआ 1612 में । जो बाद में मुमताज़ कहलाने लगी।
आसफ खा नूरजहाँ का भाई और शाहजहाँ का सगा मामा था। तो शाहजहाँ ने दूसरा विवाह अपने सगे मामा की बेटी से किया था।
शाहजहाँ का तीसरा विवाह शाहनवाज़ की बेटी के साथ हुआ 1617 में।
शाहजहाँ ने जो इमारते बनवायी –
दिल्ली में – लाल किला, जामा मस्जिद, तख्ते ताउस ।
लाल किले को उस समय “किला ऐ मुबारक” बुलाते थे ।
लाल किले में ही दीवान ऐ आम और दीवान ऐ खास बनवाया।
तख्ते ताउस को मुग़ल सिंहासन के रूप में माना गया। इस मुग़ल सिंहासन का निर्माण आगरा के एक जौहरी था जिसका नाम था बेबदल खान।
आगरा में – ताजमहल और मोती मस्जिद
शाहजहाँ ने ही 1632 में पुर्तगालियों से हुगली नदी के क्षेत्र को खाली करवाया था। हुगली नदी कोलकाता में है।
शाहजहाँ ने 1637 में सिजदा प्रथा को ख़तम कर दिया और उसकी जगह चहार ऐ तस्लीम प्रथा शुरू कर दी। ये एक प्रकार का दंडवत प्रणाम था।
शाहजहाँ के 4 बेटे थे और 2 बेटी थी
4 बेटो का नाम – औरंगज़ेब , दाराशिकोह, शुजा, मुराद
2 बेटी का नाम – जहाँआरा और रोशनआरा
औरंगज़ेब ने दाराशिकोह, शुजा, मुराद इन सब की हत्या कर दी और अपने पिता शाहजहाँ को भी बंदी बना लिया आगरे के किले में(1658) में। वहा शाहजहाँ की देखरेख उसकी बेटी जहाँआरा करती थी। शाहजहाँ 8 साल तक बंदी रहा और फिर 1666 में शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी।
औरंगज़ेब (1658-1707) – इसका पूरा नाम मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगज़ेब था। इसका जन्म 24 अक्टूबर 1618 को उज्जैन के पास दोहद नामक जगह पर हुआ।
1633 में औरंगज़ेब ने सुधाकर नामक हाथी को घायल कर दिया था जिससे खुश होकर शाहजहाँ ने इसको बहादुर की उपाधि दी।
औरंगज़ेब आलमगीर के नाम से सिंहासन पर बैठा।
21 जुलाई 1658 को शाहजहाँ को बंदी बनाने के बाद आगरा के सिंहासन पर बैठा लेकिन इसका असली राज्याभिषेक दिल्ली में 5 जून 1659 को हुआ।
नोट – औरंगज़ेब को जिन्दा पीर भी कहा जाता है।
औरंगज़ेब कट्टर सुन्नी मुस्लमान था , और औरंगज़ेब ने मुद्राओ पर कलमा खुदवाना बंद कर दिया।
नौरोज त्यौहार को मनाना बंद कर दिया था।
तुलादान और झरोखा दर्शन को भी बंद कर दिया था।
दरबार में होली, दिवाली मनाना बंद कर दिया था।
औरंगज़ेब ने 1679 ईस्वी में दुबारा जजिया कर लगा दिया और तीर्थ कर को भी वापिस शुरू कर दिया।
औरंगज़ेब संगीत विरोधी था।
औरंगज़ेब ने सिक्खो के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर को भी मरवा दिया 1675 ईस्वी में।
औरंगज़ेब ने जनता को रहत देने के लिए राहदारी और पानदारी Tax को माफ़ कर दिया।
औरंगज़ेब की मृत्यु 1707 में हो गयी और मुग़ल वंश का पतन शुरू हो गया।
औरंगज़ेब के 3 बेटे थे – मुअज्जम , आजम, कामबक्श
मुअज्जम ने आजम, कामबक्श दोनों की हत्या कर दी। मुअज्जम को ही बहादुर शाह कहा जाता है।
बहादुर शाह का कार्यकाल (1707-1712) – औरंगज़ेब ने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था।
मुअज्जम ने खुद बहादुर शाह की उपाधि ली और अपने आप को बादशाह घोषित कर दिया।
इसको बहादुर शाह प्रथम और शाहआलम प्रथम भी कहा जाता है।
जहाँदार शाह (1712-1713) – जहाँदार शाह को लम्पट मुर्ख भी कहा जाता है
फरुख्शियर (1713-1719) – अंग्रेजो के हाथो की कठ पुतली होता था ये
फरुख्शियर के काल का किंग मेकर सैय्यद बंधुओ को कहा जाता है अब्दुल्ला और हुसैन अली
अब्दुल्ला इलाहाबाद का उप राज्यपाल था और हुसैन अली पटना का।
1715 में फरुख्शियर ने बंदा बहादुर को मरवा दिया
1717 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल में व्यापर करने का अधिकार दे दिया सिर्फ 3 हजार Tax देना था साल का अंग्रेजो को।
फरुख्शियर ने अंग्रेजो को अन्धाधुंद लाइसेंस बाटे।
1719 में फरुख्शियर को सैय्यद बंधुओ ने मराठो की मदद से मरवा डाला। और रफ़ी उद दरजात को गद्दी पर बैठाया। लेकिन क्षयरोग यानि तपेदिक या टी.बी की बीमारी हुई और 4 महीने में ही यह मर गया।
मुहम्मद शाह रंगीला (1719-1748) – सैय्यद बंधुओ ने जहनशाह के बेटे रोशन अख्तर को मुहम्मद शाह की उपाधि दी और गद्दी पर बैठाया।
सैय्यद बंधुओ में से हुसैन अली को हैदर खान ने मरवा डाला और अब्दुल्ला को जहर पिलाकर मरवा दिया।
1722 में मुहम्मद शाह रंगीला का नया वजीर बना निज़ाम उल मुल्क और इसने ही हैदराबाद राज्य की नींव डाली
मुहम्मद शाह रंगीला के शासन काल में ही सआदत खान ने अवध राज्य की नींव डाली
मुहम्मद शाह रंगीला के शासन काल में ही अलवर्दी खान ने बंगाल में स्वतन्त्र राज्य की नींव डाली
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करनाल का युद्ध 1739 –
1739 में नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और 1739 में करनाल में मुहम्मद शाह रंगीला और नादिरशाह के बीच युद्ध हुआ।
और इस युद्ध में मुहम्मद शाह रंगीला हार गया और नादिरशाह की जीत हुई। जिससे दिल्ली में कुछ मुग़ल सैनिको ने नादिरशाह यानि फ़ारसी सैनिको का वध कर दिया जिससे नादिर शाह को गुस्सा आया और उसने दिल्ली में कत्लेआम मचा दिया।
नादिर शाह दिल्ली से मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा भी लूट के ले गया।
अहमद शाह का कार्यकाल (1748-1754) – यह एक अफगान शासक था और इसने अपने 2.5 साल के बेटे महमूद को पंजाब का गवर्नर बना दिया था और 1 साल के बेटे को कश्मीर का गवर्नर बना दिया था और अपने 15 साल के बेटे को खुद का ही वजीर बना दिया था।
आलमगीर द्वित्य (1754-1758) – यह जहाँदार शाह का बेटा था
शाहआलम द्वित्य (1759-1806) – इसका असली नाम अली गोहर था और राजा बनने के बाद भी यह 12 साल तक दिल्ली ही नहीं गया
इसने 1764 में बक्सर का युद्ध लड़ा बंगाल के मीर कासिम और अवध के शुजाउदौला के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ा। लेकिन हारने के कारण यह ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण में रहा यानि के बंदी रहा और 1772 में मराठो की मदद से दिल्ली पंहुचा।
इसने 1765 में बिहार, बंगाल, ओडिशा की दीवानी अंग्रेजो को दे दी और कंपनी ने इसे 26 लाख रूपए सालाना पेंशन देने का वादा किया। इसी को इलहाबाद की संधि भी कहा जाता है ।
1803 में अंग्रेजो ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। और शाहआलम द्वित्य 1806 तक अंग्रेजो की पेंशन पर ही जिन्दा रहा।
अकबर द्वित्य का कार्यकाल (1806-1837) – अकबर द्वित्य ने ही राम मोहन राय को राजा की उपाधि दी थी जिसके बाद उन्हें राजा राम मोहन राय कहा जाने लगा। और अपनी पेंशन के लिए इसको इंग्लैंड भेजा था।
बहादुर शाह ज़फर का कार्यकाल (1837-1857) – यह संगीत का शौकीन था और शायर भी था।
बहादुर शाह ज़फर ने 1857 की क्रांति में भाग लिया और इसी कारण इसको बंदी बना लिया गया और रंगून भेज दिया गया और 1862 में इनकी मृत्यु होने पर मुग़ल वंश का अंत हो गया। बहादुर शाह ज़फर की समाधी भी रंगून में ही है।