Medieval Indian History PDF Notes – मध्यकालीन भारत का इतिहास
Mahmud Ghaznavi Biography – महमूद ग़ज़नवी के बारे में महत्वपूर्ण जानकरी
गज़नी का एक शासक होता था जिसका नाम था सुबुक्तगीन और वह एक तुर्क सरदार था और यामिनी वंश से सम्बन्ध रखता था और
महमूद ग़ज़नवी सुबुक्तगीन का बेटा था और अपने पिता की मृत्यु के बाद महमूद ग़ज़नवी 998 ईस्वी में ग़ज़नी की गद्दी पर बैठा था
1000 ईस्वी से लेकर 1027 ईस्वी तक महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किये। महमूद ग़ज़नवी के प्रमुख आक्रमण :
1000 ईस्वी में पहली बार पेशावर पर आक्रमण किया था
इसने 1001 ईस्वी में जयपाल के साथ युद्ध किया। इस युद्ध में जयपाल हार गया था और महमूद ग़ज़नवी ने जयपाल को बंदी बना लिया था
महमूद ग़ज़नवी ने 1008-1009 ईस्वी में बैहिन्द के राजा आनंद पाल को हराया
इसने ने 1014 ईस्वी में हरियाणा के थानेसर पर आक्रमण किया। ये राजा हर्षवर्धन की राजधानी थी
इसने 1018 ईस्वी में कन्नौज पर आक्रमण किया। ये राजा हर्षवर्धन की दूसरी राजधानी थी
इसने 1025 ईस्वी में गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लुटा था
इसने 1027 ईस्वी में आगरा के निकट भीरा के किले पर आक्रमण किया । यह महमूद ग़ज़नवी का आखिरी आक्रमण था और बाबर का यह पहला आक्रमण था।
इनको मूर्तिभंजक और बुतशिकन भी कहा जाता है क्योकि उसने बहुत सारे हिन्दू मंदिरो और देवी देवताओ की मूर्तियों को तोडा था और नष्ट किया था।
महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आने वाला लेखक – अलबरूनी था और अलबरूनी ही पुराणों का अध्ययन करने वाला पहला मुस्लिम था
Mohammad Ghori Biography – मोहम्मद गौरी का जीवन परिचय और महत्वपूर्ण जानकारी
Mohammad Ghori मोहम्मद गौरी – 1173 ईस्वी में शहाबुद्दीन, महमूद ग़ज़नवी के सिंहासन पर बैठा था , शहाबुद्दीन का दूसरा नाम मोइज्जुद्दीन बिन शाम था। यही व्यक्ति मोहम्मद गौरी के नाम से जाना गया।
मोहम्मद गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में मुल्तान पर किया।
मोहम्मद गौरी ने 1178 ईस्वी में गुजरात पर आक्रमण किया जहा उसका सामना भीम सिंह (मूलराज) से हुआ और इस युद्ध में भीम सिंह ने मोहम्मद गौरी को हरा दिया और उसे बंदी बना लिया और कुछ दिन कैद में रखने के बाद उसे रिहा कर दिया। भारत में मोहम्मद गौरी की यह पहली हार थी
नोट – जिस समय मोहम्मद गौरी भारत के मुल्तान और दूसरे हिस्सों पर आक्रमण कर रहा था और उनको लूट रहा था तब उस समय 14 साल का एक युवक अजमेर की गद्दी पर बैठा जिसका नाम पृथ्वीराज तृतीय था।
पृथ्वीराज तृतीय ने बुंदेलखंड पर आक्रमण कर चंदेल के शासको को हरा दिया। यह महोबा की लड़ाई के नाम से जाना जाता है और इस लड़ाई में महोबा की रक्षा करते हुए आल्हा और उदल नामक दो भाई मारे गए थे। इन दोनों भाइयो का वर्णन भारतीय लोक गीत और लोक कथाओ में मिलता है।
मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज तृतीय के बीच लड़ाई की शुरुआत तब हुई जब दोनों ने ही भटिंडा (तवर हिन्द) पर अधिकार जमाना शुरू किया।
तराइन का पहला युद्ध (1191) – यह युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज तृतीय के बीच में 1191 में हुआ। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की हर हुई और पृथ्वीराज की जीत हुई। मोहम्मद गौरी ग़ज़नी से यहाँ आक्रमण करने आया था। यह अफगानिस्तान में है और मोहम्मद गौरी की राजधानी हुआ करती थी। तराइन का दूसरा नाम तरावड़ी है जो हरियाणा के करनाल में है।
तराइन का दूसरा युद्ध (1192) – यह युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज तृतीय के बीच ही हुआ। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की जीत हुई और पृथ्वीराज की हार हुई और पृथ्वीराज को सरस्वती नदी के किनारे बंदी बना लिया गया। और कई सालो तक जेल में रखा गया लेकिन बाद में अजमेर पर शाशन करने दिया गया लेकिन उसके बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को मार दिया।
मोहम्मद गौरी ने दिल्ली और अजमेर पर कब्ज़ा किया और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नीव डाली। मोहम्मद गौरी को ही भारत में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
नोट – तुर्की साम्राज्य और गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी जो मोहम्मद गौरी का गुलाम था
मोहम्मद गौरी तराइन का युद्ध जितने के बाद ग़ज़नी लोट गया और अपना साम्राज्य अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया।
1194 में मोहम्मद गौरी फिर भारत लौटा और 50000 घुड़सवारों के साथ यमुना नदी पर करके कन्नौज (U.P) पर आक्रमण कर दिया।
और कन्नौज के निकट चंदावर नामक स्थान पर मोहम्मद गौरी और जयचन्द के बीच युद्ध हुआ। और इस युद्ध में जय चंद की हार हुई और मोहम्मद गौरी की जीत हुई।
नोट – तराइन और चंदावर के युद्धों ने भारत में तुर्की साम्राज्य की नींव रखी।
मोहम्मद गौरी का भारत पर आखिरी आक्रमण 1206 में था। जब उसने बहुत बड़ी संख्या में खोखरो की हत्या की और उनका सामान लुटा।
मोहम्मद गौरी के सेनापति का नाम बख्तियार खिलजी था। जिसने नालंदा और विक्रमशिला विशवविद्यालय को नष्ट कर दिया था।
1194 में जब मोहम्मद गौरी ने कन्नौज ( चंदावर ) का युद्ध जीता उसके बाद मोहम्मद गौरी ने नए सिक्के बनवाये। इन सिक्को के एक तरफ देवी लक्ष्मी की मूर्ति थी और दूसरी तरफ अरबी भाषा में कलमा खुदवाया गया। कलमे में देवनागरी लिपि में मोहम्मद बिन शाम लिखवाया गया ।
नोट – मोहम्मद गौरी के 2 गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक और याल्दौज थे।
मोहम्मद गौरी के साथ सलीम मोईनुद्दीन चिस्ती भारत आया था। मोईनुद्दीन चिस्ती के नाम पर ही राजस्थान के अजमेर में एक दरगाह है जिसे दरगाह शरीफ के नाम से जाना जाता है और मोईनुद्दीन चिस्ती को भारत में चिस्ती साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है।
मोहम्मद गौरी के साथ बख्तियार काकी भी भारत आया था जो की एक सूफी संत था। जिसके नाम से क़ुतुब मीनार बनवायी गयी ।
जब मोहम्मद गौरी वापिस ग़ज़नी जा रहा था तो दमयक नामक स्थान पर मोहम्मद गौरी की हत्या कर दी गयी 15 मार्च 1206 में।
सल्तनत काल – Slave Mamluk Dynasty Rulers – Gulam Vansh गुलाम वंश (1206-1290)
गुलाम वंश को इल्बारी वंश भी कहा जाता है। भारत पर शासन करने वाले मुस्लिम शासको में पहला वंश गुलाम वंश या इल्बारी वंश था।
इस वंश के शासको को गुलाम इसलिए कहा जाता है क्योकि कभी न कभी इसके शासक गुलाम रहे थे किसी न किसी के। और इल्बारी इनकी जाति थी तो जाति के आधार पर इनको इल्बारी वंश भी कहा जाता है।
गुलाम वंश के शासक और उनका कार्यकाल
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210) – कुतुबुद्दीन ऐबक को चन्द्रमा का देवता भी कहा जाता है। उसने कुरान पढ़ना सिख लिया था इसलिए उसे कुरान खान भी कहा जाता है।
नोट – गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ही था।
कुतुबुद्दीन ऐबक को लाख बक्श (दानी) और पिल (हाथी) बक्श भी कहा जाता है।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत की पहली मस्जिद “कुवैत उल इस्लाम” दिल्ली में बनवाई थी । कुतुबुद्दीन ऐबक ने बख्तियार काकी के नाम पर दिल्ली में क़ुतुब मीनार की नीव रखवाई और अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा बनवाया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर को बनाया था। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु , पोलो खेलते हुए, घोड़े से गिरने से हुई थी 1210 ईस्वी में
नोट – पोलो को हिंदी में चौगान भी कहा जाता है।
इल्तुतमिश का शासनकाल (1210-1236) – इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इल्तुतमिश का शासन कल 26 वर्ष का रहा।
इल्तुतमिश का पूरा नाम – समश – उद – दीन था। इल्तुतमिश ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था।
इल्तुतमिश ने भारत में इक्ता प्रणाली शुरू की। इक्ता का अर्थ था के धन के स्थान पर तनख्वाह के रूप में भूमि प्रदान करना। ये लोगो को भूमि का एक टुकड़ा प्रदान करता था तनख्वाह के रूप में और उस भूमि के टुकड़े पर जो लोग रह रहे है उनसे Tax वसूलना और कानून व्यवस्था को बनाये रखने की जिम्मेदारी भी होती थी।
इल्तुतमिश ने तुरकान ऐ चहलगानी (चालीसा) बनाया। इस तुरकान ऐ चहलगानी में चालीस अमीर सरदारों का एक दल था। तुरकान ऐ चहलगानी का प्रमुख कार्य राजा और अमीरो के बिच में बिचोलिये का काम करना था। ताकि राजा के खिलाफ अमीरो और साहूकारों के विद्रोह को दबाया जा सके।
इल्तुतमिश तुर्क या गुलाम वंश का पहला शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलवाये थे। इल्तुतमिश ने चाँदी के “टका” और तांबा के “जीतल” सिक्के चलाये और दिल्ली टकसाल की स्थापना करवाई।
इल्तुतमिश ने भारत में पहला मकबरा बनवाया जो उसी के नाम पे था और दिल्ली में था और ये मकबरा स्क्रीच शैली में बना था। और इल्तुतमिश ने क़ुतुब मीनार को पूरा करवाया और अजमेर की मस्जिद का निर्माण करवाया।
इल्तुतमिश को “गुम्बद निर्माण का पिता” भी कहा जाता है। इल्तुतमिश ने सुल्तानगढी का निर्माण करवाया।
इल्तुतमिश की मृत्यु 30 अप्रैल 1236 में हो गयी थी। इल्तुतमिश के बेटे का नाम फिरोजशाह और बहरम शाह था और बेटी का नाम रजिया था।
रजिया सुल्तान का शासनकाल (1236-1240) – रजिया सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी थी और फिरोजशाह की बहन थी। जो फिरोजशाह के बाद गद्दी पर बैठी।
रजिया सुल्तान दिल्ली की पहली और आखिरी मुस्लिम महिला शासक थी। रजिया सुल्तान ने पर्दा प्रथा का विरोध किया। रजिया सुल्तान ने पुरुषो की पोशाक पहनना शुरू किया।
रजिया के सेनापति का नाम याकृत था। और रजिया सुल्तान के समय भटिंडा का राज्पाल “अल्तुनिय” था। रजिया सुल्तान ने चालीसा (तुरकान ऐ चहलगानी) के लोगो को नजरअंदाज किया और यही चालीसा (तुरकान ऐ चहलगानी) के लोग फिर अल्तुनिय से जाकर मिले भटिंडा में और कहा के हम सब आपका साथ देंगे राजा बनने में आप बस रजिया सुल्तान पर आक्रमण कर दो।
अल्तुनिय ने रजिया सुल्तान पर आक्रमण कर दिया चालीसा (तुरकान ऐ चहलगानी) के लोगो के साथ और रजिया सुल्तान को बंदी बना लिया और 2 शर्त रखी या तो शादी करलो या फिर मृत्युदंड। रजिया सुल्तान ने शादी के प्रस्ताव को मान लिया और भटिंडा में ही रजिया सुल्तान और राज्यपाल अल्तुनिय की शादी हो गयी थी। शादी के बाद जब रजिया सुल्तान और अल्तुनिय वापिस दिल्ली जा रहे थे तो बीच रस्ते में रजिया सुल्तान के भाई बहरम शाह ने आक्रमण कर दिया दोनों पर और 1240 में रजिया सुल्तान की मृत्यु हो गयी हरियाणा के कैथल में।
बलबन का कार्यकाल (1265-1286) – बलबन चालीसा का सदस्य था और इसने अपनी रक्षा के लिए इल्तुतमिश के परिवार को मरवा दिया था। बलबन खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। बलबन ने ही लोह और रक्त की निति चलायी थी।
बलबन ने “सिजदा” और “पैबोस” जैसी व्यवस्था लागु की जो की एक प्रकार का सलाम (दंडवत प्रणाम) होता है। बलबन के कार्यकाल में नौरोज का त्यौहार मनाया जाता था ।
बलबन ने अपने चचेरे भाई शेर खां को जहर देके मार दिया था। 1285 में मंगोलो ने मुल्तान पर आक्रमण किया और बलबन के बेटे की उस युद्ध में मृत्यु हो गयी जिससे बलबन को गहरा सदमा लगा और एक साल बाद ही 1286 में बलबन की भी मृत्यु हो गयी।
बलबन की मृत्यु के बाद अमीरो ने कैकुबाद को अपना राजा मान लिया जो उस समय सिर्फ 17 साल का था और कैकुबाद ने 1287 से 1290 तक राज किया।
Khilji Dynasty Founder Rulers – खिलजी वंश संस्थापक स्थापना (1290-1320)
खिलजी वंश के संस्थापक (1290-1296) – जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी , भारत में खिलजी वंश का संथापक था। इसका राज्याभिषेक 13 जून 1290 को हुआ था और यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जो हिन्दुओ के लिये अच्छा सोचता था।
Khilji Dynasty Rulers खिलजी वंश के रुलर्स
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) – जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करके 19 जुलाई 1296 को अलाउद्दीन खोलजी गद्दी पर बैठ गया था। जलालुद्दीन खिलजी इसका चाचा था और इसने अपने चाचा को मार कर गद्दी अपने नाम की थी।
अलाउद्दीन खिलजी के बचपन का नाम अली था । अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शिहाबुद्दीन खिलजी था। जो जलालुद्दीन खिलजी का भाई था।
अलाउद्दीन खिलजी की सबसे मह्त्वपूर्ण जीत चित्तौड़ की जीत थी। ये जीत (चित्तौड़ का युद्ध) 1302 से 1303 ईस्वी में हुआ था जिसमे आमिर खुसरो ने भी भाग लिया था।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण इसलिए किया था क्योकि अलाउद्दीन खिलजी की नजर वहां के राजा रत्न सिंह की पत्नी पदमावती पर थी और अलाउद्दीन खिलजी उसे प्राप्त करना चाहता था। राजा रत्न सिंह के सेनापति का नाम गौरा था।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर अपने बेटे खिज्र खा के नाम पर खिज्राबाद रख दिया।
इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण किया। उस समय गुजरात का राजा करण देव था। राजा करण देव की पत्नी का नाम कमला देवी था और उनके सेनापति का नाम मलिक काफ़ूर था । राजा करण देव वाघेला वंश का राजा था। इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी ने राजा करण देव को हरा दिया था और उसे मार भी दिया था।
अलाउद्दीन खिलजी, राजा करण देव की पत्नी कमला देवी को उठा कर अपने साथ ले गया और अलाउद्दीन खिलजी ने कमला देवी से शादी कर ली थी। और राजा करण देव के सेनापति को भी वो अपने साथ ले गया और उसको अपना सेनापति बना लिया। मलिक काफ़ूर एक किन्नर (हिजड़ा) था।
मलिक काफ़ूर को दक्षिणी भारत को जीतने का काम सौंपा गया और मलिक काफ़ूर ने तेलंगाना की राजधानी वारंगल पर आक्रमण कर दिया और वहा के राजा प्रतापरुद्र ने आत्मसमर्पण कर दिया और 1307 ईस्वी में ये सब हुआ था। और वहा के राजा प्रतापरुद्र ने 1307 ईस्वी में कोहिनूर हीरा मलिक काफ़ूर को दे दिया। और मलिक काफ़ूर ने यह हीरा अलाउद्दीन खिलजी को सौंप दिया।
अलाउद्दीन खिलजी को मार्किट सिस्टम (बाजार प्रणाली) का जन्मदाता माना जाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने वस्तुओ के मूल्य को लम्बे समय तक स्थिर रखा। अलाउद्दीन खिलजी ने मार्किट कण्ट्रोल सिस्टम के तहत मंडी (जहा अनाज का व्यापर होता था) और सराय ऐ अदल (जहाँ कपड़ो का व्यापर होता था) की शुरुआत की। इसके साथ साथ घोड़े – दास, मवेशी बाजार और सामान्य बाजार की व्यवस्था की।
अलाउद्दीन खिलजी के पास बहुत बड़ी सेना थी। उसके पास लगभग 4 लाख 75 हजार सैनिक थे और वो उन सबको नकद वेतन देता था। अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक 1000, 100, 10 की टुकड़ियों में बटे होते थे और इन सैनिको के प्रमुखों को खान, मलिक, अमीर, और सिपहसलार कहा जाता था।
अलाउद्दीन खिलजी ने “घोड़ो को दागने” की प्रणाली शुरू की और “सैनिको का हुलिया” रखने की प्रणाली शुरू की।
घोड़ो को दागना – उस समय अमीरो के पास, जागीरदारों के पास और जनता में भी जो अमीर था उनके पास अपने खुद के घोड़े होते थे तो ऐसे में खुद के घोड़ो की पहचान कैसे हो। तो इसके लिए उसने अपने घोड़ो की पीठ पर कुछ गरम चीज रख देता था जिससे घोड़ो की पीठ पर निशान बन जाता था जिससे वह पहचानता था की ये घोड़ो अपने है।
सैनिको का हुलिया – अलाउद्दीन खिलजी अपने सैनिको का स्केच बनाता था जिससे उनकी पहचान हो सके की ये उसके सैनिक है।
अलाउद्दीन खिलजी अपने सैनिको को 234 टका वेतन देता था प्रतिवर्ष। और इसकी सेना परमानेंट थी।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने समय में पुलिस व्यवस्था को भी मजबूत किया और उस समय पुलिस का मुख्य अधिकारी “कोतवाल” कहलाता था।
अलाउद्दीन खिलजी ने “डाक सिस्टम” पोस्ट ऑफिस को भी शुरू किया और राशन प्रणाली को भी शुरू किया।
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में अलाइ दरवाजा , सीरी का क़िला, हौज़ खास, जमातखाना मस्जिद बनवाई।
अलाउद्दीन खिलजी ने अलाइ दरवाजा, क़ुतुब मीनार में लगवाया था। अलाइ दरवाजे को पाप की राजधानी भी कहा जाता है।
कुतुबमीनार की मरम्मत फिरोज शाह तुगलक ने करवाई।
अलाउद्दीन खिलजी को प्राप्त ख्याति या उपाधियाँ –
अमीर ऐ तुनुक, सिकंदर ऐ शानी, विश्व का सुल्तान, युग का विजेता, जनता का चरवाहा। इसमें सिकंदर ऐ शानी मोस्ट इम्पोर्टेन्ट है।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 03 जनवरी 1316 को जलोदर बीमारी के कारण हुई।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफ़ूर राजा बना 1316 में। मलिक काफ़ूर को हजार दिनारी भी कहा जाता है। क्योकि गुजरात के एक व्यापारी नुसरत खान ने उसे 1297 ईस्वी में 1000 दीनार में ख़रीदा था बाजार से। और फिर नुसरत खान ने मलिक काफूर को बेच दिया राजा करण देव को और राजा करण देव ने मलिक काफूर को अपना सेनापति बना दिया था।
मलिक काफूर के बाद क़ुतुब बुद्दीन मुबारक शाह राजा बना और उसके बाद नसीरुद्दीन खुसरो शाह राजा बना खिलजी वंश में।
Tuglak Vansh Santhapak Antim Sansthapak – तुगलक वंश संस्थापक (1320-1414)
ग्यासुद्दीन तुगलक – ग्यासुद्दीन तुगलक को तुगलक वंश का संथापक कहा जाता है। ग्यासुद्दीन तुगलक ने 1320 ईस्वी में नसीरुद्दीन खुसरो शाह की हत्या करके तुगलक वंश की स्थापना की थी। ग्यासुद्दीन तुगलक का शासन कल 1320 -1325 तक रहा।
ग्यासुद्दीन तुगलक इससे पहले लाहौर के निकट दीपालपुर का गवर्नर था। ग्यासुद्दीन तुगलक का दूसरा नाम गाज़ी मलिक था। गाज़ी का दूसरा अर्थ होता है “काफिरो का हत्यारा“.
दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला यह तीसरा वंश था। ग्यासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के निकट तुगलकाबाद नमक शहर बसाया। और तुगलकाबाद को ही इसने अपनी राजधानी भी बनाया।
ग्यासुद्दीन तुगलक के बेटे का नाम मुहम्मद बिन तुगलक था “जौना खान” था। जिसे “उलगू खान” की उपाधि मिली।
ग्यासुद्दीन तुगलक ने सिचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाया। और “अकाल निति” भी बनाई।
इबन बतूता के अनुसार ग्यासुद्दीन तुगलक की हत्या उसके ही बेटे मुहम्मद बिन तुगलक ने कराई थी। इबन बतूता मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में 8 साल से काजी के पद पर कार्य करता था।
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351) – मुहम्मद बिन तुगलक का मूल नाम जौना खान था। और यह ग्यासुद्दीन तुगलक का बेटा था।
मुहम्मद बिन तुगलक को “रक्त का प्यासा” भी कहा जाता है। मुहम्मद बिन तुगलक को राज मुंदरी अभिलेखों में “दुनिया का खान” भी कहा जाता है।
मुहम्मद बिन तुगलक को “पागल बादशाह” और “पढ़ा लिखा मूर्ख” भी कहा जाता है।
मुहम्मद बिन तुगलक को उसकी कुछ योजनाओ के वजह से पढ़ा लिखा मूर्ख कहा गया जैसे की–
राजधानी बदल ली ( दिल्ली से देवगिरी)– देवगिरी को अब दौलताबाद कहा जाता है। और फिर 2 साल बाद फिर से दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
सांकेतिक मुद्रा का चलन शुरू किया (चांदी के सिक्के की जगह कांसे के सिक्के चलाये)
अकाल के समय Tax को बढ़ा दिया।
मुहम्मद बिन तुगलक के अच्छे कार्य – मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि विभाग की स्थापना की जिसे “दीवान ऐ आमिर कोही” कहा गया।
मुहम्मद बिन तुगलक ने तुगलकाबाद के नजदीक आदिलाबाद और जहाँपनाह शहर बसाया।
फ़िरोज़ शाह तुगलक , मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था।
फ़िरोज़ शाह तुगलक (1351-1388) – फ़िरोज़ शाह तुगलक का राज्याभिषेक सिंधु नदी के तट पर हुआ।
फ़िरोज़ शाह तुगलक “दासो का शौकीन” था। फ़िरोज़ शाह तुगलक ने दासो के लिए एक विभाग बनवाया जिसे “दीवान ऐ बन्दगान” कहा गया।
फ़िरोज़ शाह तुगलक ने 300 नगरों की स्थापना की जिसमे से कुछ प्रमुख है – हिसार, फतेहाबाद, फिरोजपुर, फ़िरोज़ाबाद, जौनपुर।
फ़िरोज़ शाह तुगलक ने कठोर दंड और बड़े Tax माफ़ कर दिए थे। फ़िरोज़ शाह तुगलक ने Hospital, बांध, तालाब बनवाये।
फ़िरोज़ शाह तुगलक अशोक के स्तम्भो को हरियाणा के टोपरा (अम्बाला) से और उत्तर प्रदेश के मेरठ से दिल्ली लेकर आया। और इनको उसने अपने महल के पिल्लरों में लगवा दिया।
फ़िरोज़ शाह तुगलक ने आशमानी बिजली गिरने से नष्ट हुई क़ुतुब मीनार की मरम्मत करवाई।
फ़िरोज़ शाह तुगलक ने 4 नए Tax लगाए – जजिया , जकात , ख़राज़ , ख़ुम्स
सितम्बर 1388 में फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश का पतन शुरू हो गया।
फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु के बाद नासिरूद्दीन महमूद, तुगलक वंश का अगला राजा बना जिसका शासन काल 1388 – 1412 तक रहा।
नासिरूद्दीन महमूद, तुगलक वंश का अंतिम शासक था।
नासिरूद्दीन महमूद के शासन काल में ही तैमूर ने 1398 में भारत पर आक्रमण किया और भारत में सैय्यद वंश की स्थापना की।
Sayyid Dynasty Founder Period – सैयद वंश संस्थापक पीडीऍफ़ (1414-1451)
खिज्र खान ने सैय्यद वंश की स्थापना की थी और 1414 में दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
तैमूर ने भारत में बहुत से प्रदेश जीते थे और उन जीते हुए प्रदेशों में से कुछ की कमान खिज्र खान को दे दी थी। यानि कुछ प्रदेशों का राजा खिज्र खान को बनाया गया। क्योकि खिज्र खान ने तैमूर की मदद की थी जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किये।
खिज्र खान ने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की और “रैयत ऐ आला” की उपाधि ग्रहण की।
खिज्र खान के समय में दिल्ली की हालत बहुत खराब थी और सिक्के समाप्त हो चुके थे।
खिज्र खान के समय में खुत्बा तैमूर के नाम से पढ़ा जाता था और तैमूर के बाद शाहरुख़ अगला राजा बना था यानि तैमूर का उतराधिकारी शाहरुख़ था। तो बाद में खुत्बा शाहरुख़ के नाम से पढ़ा जाने लगा।
खिज्र खान के भी 3 उतराधिकारी रहे थे।
मुबारक शाह
मुहम्मद शाह
आलम शाह
मुबारक शाह – मुबारक शाह का कार्यकाल 1421 से 1433 तक रहा। मुबारक शाह ने अपने नाम के सिक्के चलवाये और पूरी तरह से वैधानिक राजा के रूप में कार्य किया या शासन किया।
मुबारक शाह के साथ रहकर ही “याहिया बिन सरहिंदी” ने “तारीख ऐ मुबारक़शाही” की रचना की।
मुबारक शाह ने भटिंडा और दोआब के विद्रोह को सफलता पूर्वक दबा दिया लेकिन खोखर जाती के नेता जसरत ने जो विद्रोह किया था उसको मुबारक शाह दबा नहीं पाया।
नोट – खोखर जाती के नेता जसरत ने किसके समय में विद्रोह किया था तो जवाब होगा मुबारक शाह के समय में।
मुबारक शाह ने यमुना नदी के किनारे मुबारकाबाद शहर की स्थापना की और जब मुबारक शाह इस शहर को देखने जा रहा था तो इसके ही वजीर साखरुलमुल्क ने कुछ हिन्दू और कुछ मुस्लिम सरदारों के साथ मिलकर मुबारक शाह की हत्या कर दी।
मुबारक शाह के बाद अगला राजा बना मुहम्मद शाह और अब जान लेते है मुहम्मद शाह के बारे में।
मुबारक शाह – मुहम्मद शाह का कार्यकाल 1433 से 1443 तक रहा । मुहम्मद शाह, मुबारक शाह का भतीजा था।
मुहम्मद शाह का असली नाम मुहम्मद बिन फरीद खान था ।
मुहम्मद शाह ने बहलोल लोदी को “खानेखाना” की उपाधि दी थी।
मुहम्मद शाह के बाद अगला राजा आलम शाह बना और अब हम जानेंगे आलम शाह के बारे में
आलम शाह – आलम शाह का कार्यकाल 1443 से 1451 तक रहा। आलम शाह का पूरा नाम अलाउद्दीन आलम शाह था।
आलम शाह को सैय्यद वंश का अंतिम शासक माना जाता है।
आलम शाह के वजीर का नाम हामिद खान था। हामिद खान और आलम शाह की आपस में बनती नहीं थी इसलिए आलम शाह दिल्ली छोड़ कर बदायू चला गया और हामिद खान ने 1451 में दिल्ली का राज बहलोल लोदी को सौंप दिया।
आलम शाह की मृत्यु 1476 में बदायू में हुई और इस तरह से सैय्यद वंश का अंत हुआ।
Lodi Vansh Dynasty First Founder Ruler Period – लोदी वंश संस्थापक (1451-1526)
लोदी वंश भारत का पहला अफगान वंश माना जाता है।
बहलोल लोदी (1451-1489) – लोदी वंश का संस्थापक बहलोल लोदी था। दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला यह पहला अफगान शासक था।
बहलोल लोदी ने अपने नाम के सिक्के भी चलवाये।
बहलोल लोदी ने जौनपुर के राजा हुसैन शाह को हराया और जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिलाया।
बहलोल लोदी सुल्तान यानि राजा बनने से पहले सरहिंद का सूबेदार था।
बहलोल लोदी अपने अफगान सरदारों की बहुत इज्जत करता था और अपने अफगानी सरदारों को “मकसदे आलो” कहकर बुलाता था।
बहलोल लोदी जब ग्वालियर से दिल्ली लौट रहा था तो उसे लू लग गयी और वह बीमार हो गया और 12 जून 1489 को बहलोल लोदी की मृत्यु हो गयी।
सिकंदर लोदी (1489-1517) – यह बहलोल लोदी का बेटा था।
बहलोल लोदी के मृत्यु के बाद उसका बेटा सिकंदर लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
सिकंदर लोदी, लोदी वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था।
सिकंदर लोदी का मूल नाम निजाम खान था और इसने सिकंदर लोदी की उपाधि ली थी।
सिकंदर लोदी का एक और नाम गुलरुखी था और गुलरुखी नाम से ही वह फ़ारसी भाषा में कविताएं लिखा करता था।
सिकंदर लोदी के काल में ही संगीत की पुस्तक “लज्जते सिकन्दरी” की रचना हुई।
सिकंदर लोदी ने भूमि को मापने का एक पैमाना दिया जिसका नाम था “गज़ ऐ सिकन्दरी“. इसमें 32 अंक होते थे।
सिकंदर लोदी ने कुशल सैन्य और गुप्तचर प्रणाली का गठन किया था।
सिकंदर लोदी ने 1504 ईस्वी में आगरा शहर की स्थापना की। और 1506 ईस्वी में आगरा को इसने अपनी राजधानी बना लिया था।
आगरा की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राजस्थान के राजाओ पर अपना अधिकार बनाये रखना था। और व्यापारिक मार्गो पर कण्ट्रोल करना था
सिकंदर लोदी ने एक आयुर्वेदिक ग्रन्थ का फ़ारसी में अनुवाद किया जिसका नाम फरहँगे सिकन्दरी रखा गया था।
सिकंदर लोदी ने ब्राह्मणो से दुबारा जजिया कर लेना शुरू कर दिया था।
सिकंदर लोदी ने एक ब्राह्मण को सिर्फ इसलिए फांसी दे दी क्योकि उसने कहा था की हिन्दू और मुस्लिम धर्म समान रूप से पवित्र है। उस ब्राह्मण का नाम बोधन था।
सिकंदर लोदी की मृत्यु 21 नवम्बर 1517 को आगरा में हुई थी।
इब्राहिम लोदी (1517-1526) – इब्राहिम लोदी, सिकंदर लोदी का बेटा था।
सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद उसका बेटा इब्राहिम लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
इब्राहिम लोदी, लोदी वंश का आखिरी शासक था।
इब्राहिम लोदी, युद्ध के मैदान में मारे जाने वाला दिल्ली का पहला राजा (शासक) था।
इब्राहिम लोदी 1526 ईस्वी में पानीपत के पहले युद्ध में बाबर के हाथो मारा गया।
Sufi Andolan Sufi Movement in Hindi – सूफी आन्दोलन :
जो लोग सूफी संतो से शिक्षा लेते थे उन्हें मुरीद कहा जाता था।
सूफी संतो से शिक्षा लेने वाले क्या कहलाते थे – मुरीद
सूफी संत जिन आश्रमों में रहते थे – खानकाह या मठ कहते थे।
सूफी दो भागो में बटें हुए थे – बा-शारा और बे-शारा
बा-शारा किन्हें कहते थे – जो इस्लामी सिद्धांत के समर्थक थे
बे-शारा किन्हें कहते थे – जो इस्लामी सिद्धांत से बंधे नहीं थे।
उस समय भारत में 2 सिलसिले प्रसिद थे – चिश्ती और सुहरावर्दी
1 . चिश्ती सिलसिला
भारत में चिश्ती सिलसिले की शुरुआत की – ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती ने
चिश्ती सिलसिले का मुख्य केंद्र – अजमेर
चिश्ती सिलसिले के मुख्य संत – बख्तियार काकी, निजामुद्दीन औलिया, बाबा फरीद, शेख बुरहानुद्दीन
बख्तियार काकी के शिष्य – बाबा फरीद
बाबा फरीद के शिष्य – निजामुद्दीन औलिया
नोट : बाबा फरीद की रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में मिलती है। निजामुद्दीन औलिया ने अपने समय में 7 राजाओं का शासन देखा।
निजामुद्दीन औलिया के शिष्य – सलीम चिश्ती और अमिर खुसरो
दक्षिण भारत में चिश्ती की स्थापना – शेख बुरहानुद्दीन ने की थी और दौलताबाद को अपनी राजधानी बनाया था।
2 . सुहरावर्दी सिलसिला
सुहरावर्दी सिलसिले की स्थापना – शेख शिहाबुद्दीन उमर ने की
सुहरावर्दी सिलसिले को मजबूत बनाने का श्रेय – बदरुद्दीन जकारिया
बदरुद्दीन जकारिया ने मुख्य केंद्र बनाये – सिंध और मुल्तान को
3 . सतारी सिलसिला
सतारी सिलसिले की स्थापना – शेख अब्दुल्ला सतारी
सतारी सिलसिले का मुख्य केंद्र – बिहार
4 . कादरी सिलसिला
कादरी सिलसिले की स्थापना – अबुल कादिर अल जिलानी
कादरी सिलसिले का मुख्य केंद्र – बगदाद
भारत में कादरी सिलसिले को फैलाया – मुहम्मद गौस
कादरी सिलसिले के एक राजा – मुल्लाशाह
मुल्लाशाह का शिष्य – राजकुमार दारा जो शाहजहाँ का बेटा था।
5 . नक्शबंदी सिलसिला
नक्शबंदी सिलसिले की स्थापना – ख्वाज़ा उबेदुल्ला
भारत में नक्शबंदी की स्थापना – बकी बिल्लाह
6 . फिरदौसी सिलसिला
फिरदौसी सिलसिले के स्थापना – शेख शरीफुद्दीन याह्या
शेख शरीफुद्दीन के गुरु का नाम – ख्वाज़ा निजामुद्दीन
Bhakti Andolan Sansthapak भक्ति आन्दोलन संस्थापक:
छठी शताब्दी में भक्ति आंदोलन शुरू हुआ
तमिल से शुरू हुआ था बाद में यह कर्णाटक और महाराष्ट्र में भी फ़ैल गया।
भक्ति आंदोलन का विकास किसने किया – 12 अलवार वैष्णव संतो और 63 नयनार शैव संतो ने
शैव धर्म के संत जिनका नाम अप्पार था उसने पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को शैव धर्म से जोड़ा
वैष्णव संत – महाराष्ट्र में लोकप्रिय थे और भगवान विठोबा के भक्त थे
विठोबा भगवान के संत – तीर्थयात्री पंथ कहलाते थे क्योकि हर साल पंढरपुर की तीर्थ यात्रा पर जाते थे।
भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उतर भारत में कौन लेकर आया – रामानन्द
रामानन्द की शिक्षाओं से 2 सम्प्रदाय ने जन्म लिया – सगुण और निर्गुण
सगुण – ये सम्प्रदाय पुनर्जन्म में विश्वास रखता था
निर्गुण – भगवान के निराकार रूप की पूजा करता था
सगुण सम्प्रदाय के प्रशिद्ध व्यक्ति – तुलसीदास, नाभादास, ये रामभक्त थे और सूरदास , मीराबाई, ये कृष्णभक्त थे
निर्गुण सम्प्रदाय के प्रशिद्ध व्यक्ति – कबीर इन्हे भारतीय पंथो का आध्यात्मिक गुरु भी कहा जाता है
वैष्णवों ने दक्षिण में 4 मत स्थापित किये – श्री सम्प्रदाय, ब्रह्म सम्प्रदाय, रूद्र सम्प्रदाय, सनकादि सम्प्रदाय
Bhakti Andolan ke sant – भक्ति आंदोलन के संत
रामानुजाचार्य :
1017 में जन्म और 1137 में मृत्यु, इन्होने राम को अपना भगवन माना।
रामानुजाचार्य के गुरु – यादव प्रकाश
रामानन्द :
1299 में जन्म हुआ प्रयाग में, इन्होने भी भगवान राम को अपना भगवान माना
रामानन्द के शिष्य – रैदास (हरिजन) कबीर (जुलाहा) और धन्ना (जाट)
रामानन्द की 2 शिष्य – पद्मावती और सुरसरी
कबीर :
जन्म 1440 में वाराणसी में हुआ और मृत्यु 1510 में मगहर में हुई।
कबीर की पत्नी का नाम – लोई
इन्होने निराकार ब्रह्म उपासना को महत्व दिया
कबीर के अनुयायी – कबीरपंथी कहलाते थे
कबीर की वाणी का संग्रह क्या कहलाता था – बीजक
बीजक के 3 भाग है – रमैनी सबद और साखी
कबीर की वाणी संग्रह की भाषा – सधुककड़ी
कबीर किसके समकालीन थे – सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
गुरु नानक :
जन्म 1469 में रावी नदी के तट पर तलवण्डी नामक जगह पर हुआ और 1538 में करतारपुर में मृत्यु हो गयी।
गुरु नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की
गुरु नानक सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे
गुरु नानक की माता का नाम – तृप्ता देवी
गुरु नानक के पिता का नाम – कालूराम
गुरु नानक की पत्नी का नाम – सुलक्षणी
धन्ना जाट :
इनका जन्म 1415 में हुआ और माना जाता है की इन्होने भगवन की मूर्ति को हठात भोजन करवाया था और इनके गुरु का नाम रामानन्द था
मीराबाई :
1498 में इनका जन्म हुआ मेड़ता जिले के चौकारी गांव में और मृत्यु 1546 में द्वारका में हुई।
मीराबाई के पिता का नाम – रत्न सिंह राठौर
मीराबाई के पति का नाम – भोजराज
रैदास :
ये जाती से चमार थे और बनारस के रहने वाले थे
रैदास के गुरु का नाम – रामानन्द
इन्होने रायदासी सम्प्रदाय की स्थापना की
रैदास के पिता का नाम – रघु
रैदास की माता का नाम – घुरबीनिया
Mugal Vansh History Founder List PDF – मुग़ल वंश साम्राज्य वंशावली हिस्ट्री (1526-1857)
मुग़ल वंश (1526-1857) शक्तिशाली मुग़ल शासन तो 1526-1707 तक रहा।
बाबर का जन्म 1480 ईस्वी में हुआ।
बाबर सिर्फ 14 साल की आयु में ही फरगना नामक कस्बे की गद्दी पर बैठा था।
बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1518 में भीरा के किले पर किया। भीरा का किला आगरा में है।
बाबर ने भारत पर दूसरा आक्रमण 1520-1521 में सियालकोट के किले पर किया।
बाबर को भारत में किसने बुलाया
दौलत खान लोदी – यह पंजाब का गवर्नर था यानि पंजाब का सूबेदार था।
राणा सांगा – राजस्थान का राजपूत था।
आलम खान – इब्राहिम लोदी का चाचा था।
ये तीनो मिलकर दिलावर खान के साथ 1525 में काबुल गए और वहा बाबर से मिले। दिलावर खान दौलत खान लोदी का बेटा था।
इन सब ने मिलकर बाबर से कहा की आप दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर दो हम आपका साथ देंगे। आप इब्राहिम लोदी की हत्या कर दीजिये।
बाबर के युद्ध – शार्ट ट्रिक के साथ
पानी पिया, खाना खाया, चाँद देखा, घर गया, और मर गया।
1526 – पानीपत का पहला युद्ध (बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच)।
1527 – खानवा का युद्ध (बाबर और राणा सांगा के बीच)।
1528 – चंदेरी का युद्ध (बाबर और मेदिनी राय के बीच)।
1529 – घाघरा का युद्ध (बाबर और महमूद लोदी के बीच)।
1530 – बाबर की मृत्यु खाने में जहर की वजह से (इब्राहिम लोदी की माँ ने जहर मिलाया था बाबर के खाने में)।
मृत्यु के बाद बाबर को 2 जगह दफनाया गया पहले आगरा में। जहा बाद में “नूर ऐ अफगान” बाग बनाया गया जिसे आराम बाग भी कहते है।
और दूसरी बार बाबर को काबुल में दफनाया गया।
बाबर ने सड़क मापने का एक पैमाना दिया था जिसे “गज़ ऐ बाबरी” कहा जाता है।
बाबर के ऊपर एक पुस्तक लिखी गयी जिसका नाम “तुजुक ऐ बाबरी” है।
भारत में सबसे पहले बारूद और तोपखाने का प्रयोग बाबर ने ही किया था। मुस्तफा और उस्ताद अली 2 व्यक्ति थे जो तोप चलाने में माहिर थे उस समय। पानीपत के युद्ध में सबसे पहले बारूद और तोपखानों का प्रयोग हुआ था इब्राहिम लोदी को हराने के लिए।
हुमायुं (1530-1540) (1555-1556) – बाबर की मृत्यु के बाद हुमायुं 1530 में गद्दी पर बैठा। यह बाबर का बेटा था।
हुमायुं ने अपना साम्राज्य अपने तीनो भाइयो में बाट रखा था। भाइयो के नाम – कामरान, हिंदल, अस्करी।
राणा सांगा की पत्नी ने हुमायुं के पास राखी भेजी थी। और हुमायुं ने भी उसकी मदद की।
1532 – चुनार का युद्ध – हुमायुं और शेरशाह शुरी के बीच हुआ।
इस युद्ध में हुमायुं की जीत हुई और शेरशाह सूरी और हुमायुं के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत हुमायुं ने शेरशाह सूरी को कहा की आपको अपना बेटा गिरवी रखना पड़ेगा।
हुमायुं ने दिल्ली में “दीनपनाह” नगर की स्थापना की।
1539 – चौसा का युद्ध – हुमायुं और शेरशाह सूरी के बीच
यह युद्ध कर्मनाशा नदी के किनारे पर हुआ था। इस युद्ध में हुमायुं हार गया था और शेरशाह सूरी जीता था। हुमायुं को मरा हुआ समझ कर शेरशाह सूरी चला गया और बाद में एक नाव चलाने वाले ने हुमायुं की जान बचाई।
1540 – कन्नौज का युद्ध – हुमायुं और शेरशाह सूरी के बीच
इस युद्ध में भी हुमायुं की हार हुई और इस युद्ध के बाद उसे भारत छोड़ना पड़ा।
1542 में हुमायुं की पत्नी हमीदा बनो ने अमरकोट में एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम “जलालुद्दीन मोहम्मद” रखा गया जो बाद में अकबर के नाम से जाना गया। तो अकबर के बचपन का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद था।
1555 में हुमायुं ने दुबारा भारत पर आक्रमण किया। क्योकि 1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गयी और शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद उसका बेटा इस्लामशाह सूरी गद्दी पर बैठा जो इतना शक्तिशाली नहीं था तो हुमायु ने दुबारा भारत पर आकर्मण कर दिया।
1556 में पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने से हुमायुं की मृत्यु हो गयी।
हुमायुं की पत्नी हाजी बेगम ने हुमायुं का मकबरा बनवाया दिल्ली में।
हुमायुं को “बिना ताज का बादशाह” भी कहा जाता है ।
हुमायुं ने “दिल्ली में मीना बाजार” की स्थापना की ।
अबुल फज़ल ने हुमायुं को “इंसान ऐ कामिल” कहा था।
हुमायुं ज्योतिष में विश्वास रखता था और इसलिए वह सातो दिन अलग अलग रंग के कपडे पहना करता था।
शेरशाह सूरी – शेर शाह सूरी का कार्यकाल (1540-1545)
सूरी वंश का संस्थापक शेर शाह सूरी ही था। इसका बचपन का नाम फरीद था। उसने एक शेर को मारा था इसलिए इसे शेर खा की उपाधि दी गयी।
बंगाल के राजयपाल (गवर्नर) ने इसको शेर खा की उपाधि दी जिसका नाम था बाबर खान लोहानी।
चुनार के किलेदार ताज खा की पत्नी थी जिससे शेर खा ने शादी कर ली थी और इससे उसका चुनार के किले पर अधिकार भी हो गया।
चुनार के किले पर आक्रमण – 1532
यह आक्रमण हुमायुँ ने किया था शेर शाह सूरी पर। जिसमे शेर शाह सूरी की हार हुई और हुमायुँ की जीत हुई और बदले में शेर शाह सूरी को अपने कई किले हुमायुँ को देने पड़े।
चौसा का युद्ध – 1539
यह युद्ध शेर शाह सूरी और हुमायुँ के बीच हुआ था जिसमे हुमायुँ की हार हुई और शेर शाह सूरी ने चौसा पर कब्ज़ा कर लिया और शेर शाह की उपाधि धारण कर ली।
बिलग्राम या कन्नौज का युद्ध – 1540
यह युद्ध शेर शाह सूरी और हुमायुँ के बीच हुआ था जिसमे हुमायुँ की हार हुई। और दिल्ली पर शेर शाह सूरी का अधिकार हो गया और सूरी वंश की स्थापना हुई।
शेर शाह सूरी के कार्य
शेर शाह सूरी के समय में एक इतिहासकार था जिसका नाम था अब्बास सरवानी। इसने शेर शाह सूरी की काफी तारीफ की है।
शेर शाह सूरी एक सुन्नी मुस्लमान था
शेर शाह सूरी ने सड़के और सराय बनवायी। जिसे साम्राज्य की धमनियाँ कहा गया।
शेर शाह सूरी धार्मिक रूप से सहिष्णु राजा था और इसने सैनिक व्यवस्था में भी काफी सुधर किये।
शेर शाह सूरी ने घिसे पिटे सिक्को की जगह पर सोने चांदी और ताम्बे के सिक्के चलवाये। और ताम्बे का दाम चलवाया।
शेर शाह सूरी ने पहली सड़क लाहौर से सोनार गांव (बंगाल) तक जाती थी उसका निर्माण करवाया यह सड़क सबसे लम्बी सड़क थी और इसे “सड़क ऐ आजम” कहा गया और आज इसी सड़क का नाम ग्रांड ट्रंक रोड है ।
शेर शाह सूरी के काल में रची गयी कुछ किताबे – पदमावत, अखरावट, बारहमासा, आखिरीकलाम। ये सभी किताबे मलिक मुहम्मद जायसी ने लिखी थी।
1545 में शेर शाह सूरी की मृत्यु हो गयी कलिंजर फतह के दौरान।
अकबर (1556-1605) – अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट में हुआ था।
अकबर के पिता का नाम हुमायुं और माता का नाम हमीदा बानो था। हुमायुं तैमूर खानदान से था और माता चंगेज़ खा खानदान से थी।
इस प्रकार अकबर का सम्बन्ध तुर्को से भी था और मंगोलो से भी था।
अकबर का राज्याभिषेक बैरम खान की देखरेख में हुआ। और यह पंजाब के गुरदासपुर जिले के कलानौर नामक स्थान पर हुआ और 14 फरवरी 1556 में हुआ। अकबर का राज्याभिषेक मिर्ज़ा अबुल कासिम ने किया था।
1556 ईस्वी में अकबर ने बैरम खा को अपना वजीर बना लिया और उसे “खान ऐ खाना” की उपाधि दी।
1560 ईस्वी में बैरम खान की मृत्यु हो गयी।
अकबर के शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ –
1562 में अजमेर का दौरा।
1562 ईस्वी में ही अकबर ने युद्ध में जो बंदी बनते थे उनको दास बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया।
1563 ईस्वी में तीर्थ यात्रा पर जो Tax लगता था उसको समाप्त कर दिया।
1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया।
1571 में फतेहपुर सिकरी की स्थापना की।
1572 में बुलंद दरवाजे का निर्माण कराया।
1574 में मनसबदारी प्रथा शुरू की।
1575 में फतेहपुर सिकरी में इबादत खाना बनवाया। इबादत खाना नमाज़ पढ़ने का कमरा होता था।
1576 में पुरे साम्राज्य को 12 सुबो में बाट दिया।
1578 में इबादत खाने को सभी धर्मो के लिए खोला गया और यह धर्म संसद बना।
1582 में तौहीदे इलाही यानि दीन ऐ इलाही धर्म की घोषणा की।
1582 में ही टोडरमल ने दहशाला प्रणाली लागु की। यानि 10 साल में एक बार Tax देना।
अकबर के सैन्य अभियान –
पहला अभियान – 1561 में मालवा का अभियान था। मालवा का राजा बज बहादुर था।
दूसरा अभियान – 1561 में चुनार का अभियान था। मुग़ल सेना को लीड कर रहा था आसफ खान।
तीसरा अभियान – 1564 में गोंडवाना का अभियान था। मुग़ल सेना को लीड कर रहा था आसफ खान और वीर नारायण को हराया था।
चौथा अभियान – 1562 से 1570 तक चला और इसके तहत अकबर ने कई राजपूत राज्यों को अपने अधीन कर लिया।
पांचवा अभियान – 1571 में गुजरात का अभियान था। गुजरात का राजा मुजफ्फर खान था।
छठा अभियान – 1574 से 1576 बंगाल और बिहार का अभियान था। वहा के शासक दाऊद खान था।
नोट – अकबर ने 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को हरा दिया था।
सातवां अभियान – 1581 में काबुल का अभियान था। काबुल के राजा हाकिम मिर्ज़ा को अकबर और मानसिंह ने हराया।
आठवां अभियान – 1586 में कश्मीर का अभियान था और वहा के राजा युसूफ खा और याकुत खा को हराया था। मुग़ल सेनापति कासिम खान और भगवान दास ने हराया था।
नौवा अभियान – 1591 में सिंध का अभियान था जिसमे जानी बेग को हराया था। मुग़ल सेनापति अब्दुर्रहमान ने।
दसवां अभियान – 1591 में ओडिशा का अभियान था जिसमे निशार खा को हराया मुग़ल सेनापति मानसिंह ने।
ग्यारहवा अभियान – 1595 में बलूचिस्तान का अभियान था। पन्नी अफगान को हराया।
बारहवां अभियान – 1595 में कंधार का अभियान था। मुजफ्फर हुसैन ने खुद अपना राज्य सौंप दिया।
तेरहवा अभियान – 1601 में असीरगढ़ का अभियान था। इसमें अकबर ने मीर बहादुर को हराया था और यह अकबर की अंतिम जीत थी।
अकबर के कार्य –
भू राजस्व कर वसूलने के लिए किरोड़ी नाम के अधिकारियो को चुना।
कृषि योग्य भूमि को 3 भागो में बाट दिया था – पोलज , चाचर, बंजर।
पोलज – हर साल खेती होती थी।
चाचर – 2 साल छोड़ कर खेती होती थी।
बंजर – जिसमे कोई खेती नहीं होती थी।
अकबर के दरबार का दौरा करने वाला पहला अंग्रेज रॉल्फ फिच था।
अकबर के नवरत्न –
अबुल फज़ल – इसने अकबरनामा और आइना ऐ अकबरी लिखी थी
फ़ैज़ी – यह अबुल फज़ल का छोटा भाई था और यह अकबर के बेटे जहाँगीर का गुरु भी था।
बीरबल – दीन ऐ इलाही को इसने स्वीकार किया था। दीन ऐ इलाही को स्वीकार करने वाला पहला हिन्दू था।
टोडरमल – यह अकबर का वित् मंत्री था और कृषि मंत्री था। इसने ही दहशाला प्रणाली शुरू करवाई थी।
मानसिंह – अकबर का सलाहकार था।
तानसेन – यह संगीत में रूचि रखता था।
रहीम खान – बहरम खा का बेटा था लेकिन बाद में अकबर ने इसको अपना सौतेला पुत्र बनाया और बहरम खा की पत्नी से शादी कर ली।
मुल्ला दो प्याजा – यह अकबर के धार्मिक कार्य करता था।
फ़क़ीर आजिजाओ दीन – यह अकबर के नौ रत्नो में से एक था।
1605 में अकबर की मृत्यु हुई और अकबर को आगरा के निकट सिकंदरा में दफनाया गया।
जहाँगीर (1605-1627) – जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त 1559 को हुआ।
जहाँगीर के पिता का नाम अकबर था और माता का नाम मरियम उज जमानी था ।
जहाँगीर के गुरु का नाम फ़ैज़ी था जो अबुल फज़ल का भाई था।
जहाँगीर के काल को चित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
जहाँगीर का पहला विवाह जयपुर के राजा भगवन दास की बेटी मानबाई से 1685 में हुआ।
जहाँगीर के बड़े बेटे खुसरो का जन्म मानबाई से ही हुआ था।
जहाँगीर का दूसरा विवाह नूरजहाँ से हुआ था – जहाँगीर का एक सेनापति था शेर खान या शेर अफगानी। और उसकी पत्नी थी मेहरुत्रिसा।
जहाँगीर को मेहरुत्रीसा पसंद आ गयी तो उसने अपने सेनापति यानि शेर खा को बोला की मुझे इससे शादी करनी है तो शेर खा ने कहा की महाराज ये मेरी पत्नी है और मेरे जीते जी आप इससे शादी नहीं कर सकते और जहाँगीर ने शेर खा को ही मरवा दिया और मेहरुत्रीसा से शादी कर ली और बाद में उसका नाम नूरजहाँ रखा और उसे बादशाह बेगम की उपाधि भी दी।
जंजीर ऐ आदिल – जहाँगीर ने आगरा के किले से थोड़ी दूर एक स्थान से , आगरा के किले तक घंटिया लगवाई जिसमे एक (गोल्डन चेन) स्वर्ण जंजीर भी थी। पीड़ित व्यक्ति घंटिया बजाकर जहाँगीर से फरियाद कर सकता था। इसको न्याय की जंजीर भी कहा जाता है।
ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यापर करने की अनुमति 1611 – जहाँगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी से आये कैप्टन हॉकिंस को भारत में व्यापर करने की अनुमति दे दी थी।
कैप्टन हॉकिंस 1608 में भारत आया था और 1609 से 1611 तक जहाँगीर के दरबार में काम किया।
जहाँगीर ने दो अस्पा और तीन अस्पा की प्रथा चलाई।
दो अस्पा – मनसबदार को दुगने घोड़े रखने पड़ते थे जितने उनके पास सैनिक है उससे।
तीन अस्पा – मनसबदार को तीन गुना घोड़े रखने पड़ते थे जितने उनके पास सैनिक है उससे।
जहाँगीर ने तुजुक ऐ जहागिरी की रचना की फारसी भाषा में।
जहाँगीर ने सिकंदरा में अकबर का मकबरा बनवाया और लाहौर की मस्जिद का निर्माण किया।
जहाँगीर के बेटे खुसरो ने जहाँगीर का विद्रोह करना शुरू कर दिया और खुसरो आगरे के किले से भाग निकला और तरनतारन नमक जगह पर सिक्ख गुरु अर्जुन देव से मिला और उसको अपना गुरु बना लिया। लेकिन 1622 में खुर्रम ने खुसरो की हत्या करवा दी। जहाँगीर का ही आदेश था।
खुर्रम को ही बाद में शाहजहाँ कहा गया।
जहाँगीर ने ही सिक्ख गुरु अर्जुन देव को भी मरवा दिया। ये सिक्खो के पांचवें गुरु थे।
जहाँगीर ने कश्मीर का शालीमार बाग बनवाया और निशांत बाग भी बनवाया जो कश्मीर में ही है।
जहाँगीर ने अपने राज्याभिषेक के सातवे साल यानि 1612 में हिन्दुओ की प्रसिद त्यौहार रक्षा बंधन मनाया। जिसको निगाह ऐ दश्त नाम दिया गया।
शाहजहाँ (1628-1658) – शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था।
शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 को लाहौर में हुआ।
शाहजहाँ के पिता का नाम जहाँगीर और माता का नाम जोधाबाई था।
शाहजहाँ को शाहजहाँ की उपाधि जहाँगीर ने ही दी थी अहमदनगर जीतने के बाद।
शाहजहाँ का काल भवन निर्माण कला का स्वर्ण युग माना जाता है।
शाहजहाँ के भी 2 विवाह हुए थे। शाहजहाँ का पहला विवाह सफ़वी वंश की राजकुमारी मिर्ज़ा हुसैन सफ़वी की बेटी से हुआ था 1610 ईस्वी में।
शाहजहाँ का दूसरा विवाह आसफ खा की बेटी अर्जुमंद बनो बेगम से हुआ 1612 में । जो बाद में मुमताज़ कहलाने लगी।
आसफ खा नूरजहाँ का भाई और शाहजहाँ का सगा मामा था। तो शाहजहाँ ने दूसरा विवाह अपने सगे मामा की बेटी से किया था।
शाहजहाँ का तीसरा विवाह शाहनवाज़ की बेटी के साथ हुआ 1617 में।
शाहजहाँ ने जो इमारते बनवायी –
दिल्ली में – लाल किला, जामा मस्जिद, तख्ते ताउस ।
लाल किले को उस समय “किला ऐ मुबारक” बुलाते थे ।
लाल किले में ही दीवान ऐ आम और दीवान ऐ खास बनवाया।
तख्ते ताउस को मुग़ल सिंहासन के रूप में माना गया। इस मुग़ल सिंहासन का निर्माण आगरा के एक जौहरी था जिसका नाम था बेबदल खान।
आगरा में – ताजमहल और मोती मस्जिद
शाहजहाँ ने ही 1632 में पुर्तगालियों से हुगली नदी के क्षेत्र को खाली करवाया था। हुगली नदी कोलकाता में है।
शाहजहाँ ने 1637 में सिजदा प्रथा को ख़तम कर दिया और उसकी जगह चहार ऐ तस्लीम प्रथा शुरू कर दी। ये एक प्रकार का दंडवत प्रणाम था।
शाहजहाँ के 4 बेटे थे और 2 बेटी थी
4 बेटो का नाम – औरंगज़ेब , दाराशिकोह, शुजा, मुराद
2 बेटी का नाम – जहाँआरा और रोशनआरा
औरंगज़ेब ने दाराशिकोह, शुजा, मुराद इन सब की हत्या कर दी और अपने पिता शाहजहाँ को भी बंदी बना लिया आगरे के किले में(1658) में। वहा शाहजहाँ की देखरेख उसकी बेटी जहाँआरा करती थी। शाहजहाँ 8 साल तक बंदी रहा और फिर 1666 में शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी।
औरंगज़ेब (1658-1707) – इसका पूरा नाम मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगज़ेब था। इसका जन्म 24 अक्टूबर 1618 को उज्जैन के पास दोहद नामक जगह पर हुआ।
1633 में औरंगज़ेब ने सुधाकर नामक हाथी को घायल कर दिया था जिससे खुश होकर शाहजहाँ ने इसको बहादुर की उपाधि दी।
औरंगज़ेब आलमगीर के नाम से सिंहासन पर बैठा।
21 जुलाई 1658 को शाहजहाँ को बंदी बनाने के बाद आगरा के सिंहासन पर बैठा लेकिन इसका असली राज्याभिषेक दिल्ली में 5 जून 1659 को हुआ।
नोट – औरंगज़ेब को जिन्दा पीर भी कहा जाता है।
औरंगज़ेब कट्टर सुन्नी मुस्लमान था , और औरंगज़ेब ने मुद्राओ पर कलमा खुदवाना बंद कर दिया।
नौरोज त्यौहार को मनाना बंद कर दिया था।
तुलादान और झरोखा दर्शन को भी बंद कर दिया था।
दरबार में होली, दिवाली मनाना बंद कर दिया था।
औरंगज़ेब ने 1679 ईस्वी में दुबारा जजिया कर लगा दिया और तीर्थ कर को भी वापिस शुरू कर दिया।
औरंगज़ेब संगीत विरोधी था।
औरंगज़ेब ने सिक्खो के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर को भी मरवा दिया 1675 ईस्वी में।
औरंगज़ेब ने जनता को रहत देने के लिए राहदारी और पानदारी Tax को माफ़ कर दिया।
औरंगज़ेब की मृत्यु 1707 में हो गयी और मुग़ल वंश का पतन शुरू हो गया।
औरंगज़ेब के 3 बेटे थे – मुअज्जम , आजम, कामबक्श
मुअज्जम ने आजम, कामबक्श दोनों की हत्या कर दी। मुअज्जम को ही बहादुर शाह कहा जाता है।
बहादुर शाह का कार्यकाल (1707-1712) – औरंगज़ेब ने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था।
मुअज्जम ने खुद बहादुर शाह की उपाधि ली और अपने आप को बादशाह घोषित कर दिया।
इसको बहादुर शाह प्रथम और शाहआलम प्रथम भी कहा जाता है।
जहाँदार शाह (1712-1713) – जहाँदार शाह को लम्पट मुर्ख भी कहा जाता है
फरुख्शियर (1713-1719) – अंग्रेजो के हाथो की कठ पुतली होता था ये
फरुख्शियर के काल का किंग मेकर सैय्यद बंधुओ को कहा जाता है अब्दुल्ला और हुसैन अली
अब्दुल्ला इलाहाबाद का उप राज्यपाल था और हुसैन अली पटना का।
1715 में फरुख्शियर ने बंदा बहादुर को मरवा दिया
1717 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल में व्यापर करने का अधिकार दे दिया सिर्फ 3 हजार Tax देना था साल का अंग्रेजो को।
फरुख्शियर ने अंग्रेजो को अन्धाधुंद लाइसेंस बाटे।
1719 में फरुख्शियर को सैय्यद बंधुओ ने मराठो की मदद से मरवा डाला। और रफ़ी उद दरजात को गद्दी पर बैठाया। लेकिन क्षयरोग यानि तपेदिक या टी.बी की बीमारी हुई और 4 महीने में ही यह मर गया।
मुहम्मद शाह रंगीला (1719-1748) – सैय्यद बंधुओ ने जहनशाह के बेटे रोशन अख्तर को मुहम्मद शाह की उपाधि दी और गद्दी पर बैठाया।
सैय्यद बंधुओ में से हुसैन अली को हैदर खान ने मरवा डाला और अब्दुल्ला को जहर पिलाकर मरवा दिया।
1722 में मुहम्मद शाह रंगीला का नया वजीर बना निज़ाम उल मुल्क और इसने ही हैदराबाद राज्य की नींव डाली
मुहम्मद शाह रंगीला के शासन काल में ही सआदत खान ने अवध राज्य की नींव डाली
मुहम्मद शाह रंगीला के शासन काल में ही अलवर्दी खान ने बंगाल में स्वतन्त्र राज्य की नींव डाली
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करनाल का युद्ध 1739 –
1739 में नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और 1739 में करनाल में मुहम्मद शाह रंगीला और नादिरशाह के बीच युद्ध हुआ।
और इस युद्ध में मुहम्मद शाह रंगीला हार गया और नादिरशाह की जीत हुई। जिससे दिल्ली में कुछ मुग़ल सैनिको ने नादिरशाह यानि फ़ारसी सैनिको का वध कर दिया जिससे नादिर शाह को गुस्सा आया और उसने दिल्ली में कत्लेआम मचा दिया।
नादिर शाह दिल्ली से मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा भी लूट के ले गया।
अहमद शाह का कार्यकाल (1748-1754) – यह एक अफगान शासक था और इसने अपने 2.5 साल के बेटे महमूद को पंजाब का गवर्नर बना दिया था और 1 साल के बेटे को कश्मीर का गवर्नर बना दिया था और अपने 15 साल के बेटे को खुद का ही वजीर बना दिया था।
आलमगीर द्वित्य (1754-1758) – यह जहाँदार शाह का बेटा था
शाहआलम द्वित्य (1759-1806) – इसका असली नाम अली गोहर था और राजा बनने के बाद भी यह 12 साल तक दिल्ली ही नहीं गया
इसने 1764 में बक्सर का युद्ध लड़ा बंगाल के मीर कासिम और अवध के शुजाउदौला के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ा। लेकिन हारने के कारण यह ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण में रहा यानि के बंदी रहा और 1772 में मराठो की मदद से दिल्ली पंहुचा।
इसने 1765 में बिहार, बंगाल, ओडिशा की दीवानी अंग्रेजो को दे दी और कंपनी ने इसे 26 लाख रूपए सालाना पेंशन देने का वादा किया। इसी को इलहाबाद की संधि भी कहा जाता है ।
1803 में अंग्रेजो ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। और शाहआलम द्वित्य 1806 तक अंग्रेजो की पेंशन पर ही जिन्दा रहा।
अकबर द्वित्य का कार्यकाल (1806-1837) – अकबर द्वित्य ने ही राम मोहन राय को राजा की उपाधि दी थी जिसके बाद उन्हें राजा राम मोहन राय कहा जाने लगा। और अपनी पेंशन के लिए इसको इंग्लैंड भेजा था।
बहादुर शाह ज़फर का कार्यकाल (1837-1857) – यह संगीत का शौकीन था और शायर भी था।
बहादुर शाह ज़फर ने 1857 की क्रांति में भाग लिया और इसी कारण इसको बंदी बना लिया गया और रंगून भेज दिया गया और 1862 में इनकी मृत्यु होने पर मुग़ल वंश का अंत हो गया। बहादुर शाह ज़फर की समाधी भी रंगून में ही है।
Maratha Empire Kings History – मराठा साम्राज्य इतिहास
संस्थापक – मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी थे।
शिवाजी का जन्म 1627 में पूना में हुआ था। शिवनेर के किले में हुआ था।
शिवाजी के पिता का नाम शाह जी भोंसले था और माता का नाम जीजाबाई था।
शिवाजी ने बीजापुर राज्यों की सीमाओं में पड़ने वाले किलो पर अपना अधिकार जमा लिया था।
शिवाजी पर कई बार जानलेवा हमले हुए जिनमे से कुछ इस प्रकार है।
बीजापुर के सुल्तान ने अफ़ज़ल खान के नेतृत्व में 1659 में एक सेना भेजी शिवाजी को मारने के लिए। लेकिन शिवाजी ने अफ़ज़ल खान को ही मार डाला और सेना को हरा दिया।
बीजापुर के बाद औरंगज़ेब ने शिवाजी को मारने के लिए शाहिस्ता खान को भेजा। लेकिन शिवाजी ने गोर्रिल्ला युद्ध प्रणाली के तहत पूना में विश्राम कर रहे शाहिस्ता खान पर रात में ही हमला कर दिया लेकिन शाहिस्ता खान भाग निकला और उसका बेटा मारा गया
1664 में शिवाजी ने सूरत शहर को लूटा था। इस शहर से मुगलो को बहुत अधिक धन या राजस्व मिलता था।
इससे गुस्सा होकर औरंगज़ेब ने राजा जय सिंह को युद्ध करने के लिए भेजा और तब शिवाजी और राजा जय सिंह के बीच युद्ध हुआ जिसमे शिवाजी की हार हुई और शिवाजी ने राजा जय सिंह के साथ 1665 में पुरन्दर की संधि कर ली।
पुरन्दर की संधि के अनुसार शिवाजी ने अपने 35 किलो में से 23 किले मुगलो को दे दिए।
राजा जय सिंह ने शिवाजी से कहा की आप औरंगज़ेब से मिलने आगरा चले क्योकि औरंगज़ेब यही चाहता था और औरंगज़ेब का ही आदेश था इसलिए राजा जय सिंह ने शिवाजी को सुरक्षा का आश्वासन दिया तो शिवाजी, औरंगज़ेब से मिलने आगरा पंहुचा अपने बेटे सम्भा जी के साथ
औरंगज़ेब ने शिवाजी और उनके बेटे सम्भा जी को आगरा नगर के जयपुर भवन में कैद कर लिया लेकिन शिवाजी वहा से मिठाइयों की टोकरी में छिपकर भाग निकले और अपने राज्य में पहुंच गए और अपनी सेना को मजबूत किया। और अपने सभी हारे हुए किलो को वापिस पा लिया। विवश होकर औरंगज़ेब ने शिवाजी को राजा की उपाधि दी।
1674 में रायगढ़ में शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करवाया और छत्रपति की उपाधि ग्रहण की।
शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक बनारस के महान पंडित विश्वेश्वर जिनका दूसरा नाम गंगाधर था उनसे करवाया।
शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बना लिया था।
शिवाजी की मृत्यु 1680 में हुई।
शिवाजी के उत्तराधिकारी –
शिवाजी का उत्तराधिकारी संभाजी था और इसने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया
संभाजी के बाद 1689 में राजाराम को नया छत्रपति बनाया गया
राजाराम के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई को नियुक्त किया गया
इसी बीच संभाजी का पुत्र साहू जो औरंगजेब के कब्जे में था वो वापिस महाराष्ट्र आ गया
1707 में साहू और ताराबाई के बीच में खेड़ा का युद्ध हुआ और इसमें साहू ने जीत प्राप्त की
1713 में साहू ने बालाजी विश्वनाथ को अपना पेशवा बनाया, पेशवा को प्रधानमंत्री बोला जाता था
इसके बाद में अगला पेशवा बाजीराव प्रथम बना जो मस्तानी नामक महिला से सम्बन्ध के कारण प्रसिद्ध था
दिल्ली पर आक्रमण करने वाला पहला पेशवा बाजीराव प्रथम था
1740 में बाजीराव की मृत्यु हो गयी और उसके बाद बालाजी बाजीराव अगला पेशवा बना
बालाजी बाजीराव को नाना साहब के नाम से भी जाना जाता था
अंतिम पेशवा राघोवा का बेटा बाजीराव द्वितीय था
पहला आंग्ल मराठा युद्ध – 1782 सालबाई की संधि के साथ खत्म हुआ
दूसरा आंग्ल मराठा युद्ध – 1803 से 1805 तक
तीसरा आंग्ल मराठा युद्ध – 1817 से 1819 तक